आर्याना (अफगानिस्तान) | Aryana (afganistan)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रघुनाथ सिंह (भारतीय राजनीतिज्ञ) :-
रघुनाथ सिंह (१९११ - २६ अप्रैल १९९२) एक स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता, तथा लगातार ३ बार, १९५१, १९५६ और १९६२ में वाराणसी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के तरफ से लोकसभा सांसद थे। वे स्वतंत्र भारत में, वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के पहले निर्वाची सांसद थे। १९५१ से १९६७ तक, तगतर १६ वर्ष तक उन्होंने वाराणसी से सांसद रहे, जिसके बाद १९६७ के चुनाव में उनको पराजित कर, बतौर सांसद, उन्हें अपनी सादगी और कर्मठता के लिए जाना जाता था।
निजी एवं प्राथमिक जीवन तथा स्वतंत्रता संग्राम -
वे मूलतः वाराणसी ज़िले के खेवली भतसार गाँव के रहने वाले थे।उनका जन्म
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आरयाना (अफगानिस्तान) ३
सुननेके घाद । रावी बष्टती ची जारी धी) सन् १९२९ क
द्सिम्बरमें इसके तटपर पण्डिय जवाहरलाछकी संग माया था ।
उस दिन पूर्ण स्वतन्त्रताकी घोषणा बारह बजे रात हुई थी।
उनमें थे पेशाबरके पठान । उनमें थे बलूचिस्तानके बलूची । उनमें
थे पंजाबके सिख | उनमें था सारा हिन्दुस्तान । हम नाये ये।
आजाद हिन्दुस्तानकी मनोहर स्वप्तकी कल्पनामें। आज्ञादीकी
बाद इन्सान नाचा फिर वहीं, लेकिन हेवाल बनकर ।
हजारों फुट ऊपरसे देख रहा था लछाजपतरायकी कमेमूमि ।
देख रहा था भगतसिंहकी नगरी । देख रहा था सिख्ोंकी कभीकी
शजधानी | मन भरकर देख थे सका। विम्याम बढ़ता गया |
छाहोर छूट गया--ऊपटते हुए अनंगपाक, जयपाछ, सिखोंके
इतिहासो ।
सीधी-सीधी न्रे थीं। उनमें जछ भरा था। खेत लछहुलहा
रहे थे । सरसों फूछी थी । गेहूँमें बालियाँ छग रही थीं | यह था
छायलपुरका इलाका | यहाँका गेहूँ सारा भारत खाता था । बह
हमें नसीब नहीं । हमें बहुत-कुछ अब नसीब नहीं |
हम चक्छे शेगिस्तानफे ऊपर । हमारा विमान पेशाबर होकर
ने जा सका था। पाकिसतानने राखा डेरा गाजी खाँ होकर दिया
था। छायछपुरसे सिन्धुकी घाटीतक छजाढ़-भूमि थो। बिखरे
सूखे गाँब, करबे, शहर दिखाई दिये। दस वर्ष पहले थे हिन्दुस्तानी
ये भौर आज | बिमान अपनी छाया नीचे छोडता चरता गया ।
सिन्धु मद् आया । छडचायी आंखें नीचे झुक । नीचेसे जेसे
कोई बुछा रहा था। ओह-«इसके साथ इतनी स्मृतियाँ थीं!
इतने इतिहास थे, इतनी भावनाएँ খাঁ! मन करता था कूद पदं ।
छहरोंमें समा जाऊँ। पूछुँ--तुमने हमें हिन्दू नाम क्यों दिया ९
इमसे क्यों रूठ गयी १ हम अपनी 'सम्ध्या'मे तुझे रोज याद करते
हैं।। तेरा शुण-गांन करते नहीं थकते ओर तू हमारी तरफ बेखती
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