कविवर रत्नाकर | Kavivar Ratnaakar

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Kavivar Ratnaakar by कृष्णशंकर शुक्र - Krishnashankar Shukr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ & ] मलने इत्यादि अनेक अनुभावों का सूक्तम दृष्टि से निरीक्षण कर काव्य मे उपयोग क्रिया है । रत्नाकर जी की दृष्टि अनुभावों के निरीक्षण फ्रने में बहुत सफल रही है। यें तो संख्या गिनाने को अनेक कवियों ने इनको योजना को है, पर परंपरा पाठन रूप में । रूढ़ि का अंध अनुसरण करनेवालों की रचना में वद् बात नहों आ पाती । स्वतंत्र अनुभूति तथा निरीक्षण से प्राप्त योजना में स्वाभाविकता तथा प्रभाव उत्पन्न करने को शक्ति रहतो है। सुने सुनाए अनुभावों छो योजना करने में वह बात कहाँ आ सकती है जा आँखें खोलकर स्वयं निरीक्षण करनेवाले की कृतियें में। यह निस्संकोच कहा जा सकता है कि अनुभावों की सफल योजना करने में हिंदों के बहुत कम ही कवि रत्नाकर जी से आगे बढ़ पाए हेंगे। कितने कवि इनसे पीछे छूट गए हैं कह कर कंगड़ा कौन मोल ले | कवि की इस विशे- पता का अध्ययन भाव-व्यंजना के अध्ययन के प्रसंग में होगा । पर यहाँ भो कुछ उदाहरण देख लेना प्रासंगिक ही होगा। हरिश्चंद्र काव्य से देखिए । इंद्र ने अपना काय सिद्ध करने को विश्वामित्र के क्राध को भड़का दिया । हमारे सामने बेचारा हरिश्ंद्र क्‍या है यह सोचते हुए विश्वामित्र क्रोध में भरे हुए अयोध्या की ओर जा रहे हैं । कवि ने क्रोध का नाम नहीं लिया। पर ऋषि जी की अवस्था को देख कर उनके हृदय में धधकने बाली क्रोधापि को देखिएः- “देलौ बेगिषहि जो ताकौ महि तेज नसार्घौ । तौ पुनि पन कारि करटौ न विश्यारित्न कारवो ॥




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