उपजीव्य ग्रन्थों के सन्दर्भ में केशव की मौलिकता | Upajivy Grantho Ke Sandarbh Me Keshav Ki Maulikata
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
672
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
ज्ञानमंजरी मिश्रा - Gyanmanjari Mishra
No Information available about ज्ञानमंजरी मिश्रा - Gyanmanjari Mishra
डॉ किशोरी लाल - Dr. Kishori Lal
No Information available about डॉ किशोरी लाल - Dr. Kishori Lal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द
कै सम्बन्धर्मे € সালে ছিল আন আপাত ৪০ विश्वनाथ भाद गितन
धी उसे पकी एवन मानने के पक्ष में है। अआचायै विश्वनाथ प्रसाद শিল্প
इसकी अप्रमाणिककता' पर विशेण विचार नहाँ कर सके, छगता है पाण्डेय जी के
तन से वे अधिक सह्मत नहीं ह। 60 हजारी/पाद उ्रिवेदी' पाण्डेय जो के का
के अप्घार पर हो इसे परव तीं काछ की पूचना स्वीकार करते है । जी भी हो,
इसकी अप्रयाण्पिकता' मी विशेण असंदिग्ध नहों है। इसकी साणा इतनी
परिष्कृत ह ओर नायिका के का विवेचन तनी श्रीद शठी में किया गया है,
जिसके कारण उसकी प्रामाणिकता में सनन््देह होना स्वे]माविक है । निष्कर्ण॑त!ः
यही कहा আ জলা है कि ছ্ীণলী' টৈতি ग्रन्थों की परम्फाय में इसका महत्व
শ্লিহলণ দুদ অত্থঙ্জি |
सूरदास का ˆ साहित्य रही ˆ अर ˆ सुगं $ कृष पद লিজ
गि सवनार्जौ के उत्कृष्ट उदाहएण ह । / साहित्य तहरी में री तिबद्ता
की' प्रयुत्ति #तनी अधिक मुखर्त है कि उसके कारण सूर साहित्य के कुछ विद्वान
के सुर कृत रचना कहने में परयाप्त सन््देह् अक्ट करते हैं। इसमें सन्देह नहों कि
सूर्सागर । और ˆ साहित्य कृषी में काव्यगत ख़व॒त्ति की दुष्ष्टि से इतना
अधिक साम्य कि कते बहुत शीघ्र अप्रमाणिक रचना मी नहों माना जा सकता |
~ सहित्य ठो ˆ मँ नानापिष अर्काः ओर् तायििाओं का निकपणा कूट
शी भै क्रिथा- गया है । अतिशय चम कार হী অভীক रियता कै कारणम इसकी
सहन सर्वता प्रायः चगण हो गयी है। सूर में जो केशव का ब्धगाम्मीय कहा
जाता ड,वह क्षममें महीमाति देखा जा জলা ই | ধরছি অথ में इतनी अधिक
दृ्ूहता आ गयी है कि बिना टीका के अधथ को गहराई मे उत्रता आसान नहीं।
৪০ ৪০ হলঃ বলার রা জানত রহ গত গাও টা এছ কাঠ ও ওলাও ডা ওর ধারা খর জা জি বগা
१० हिन्व सहित्य उरस्क उप भी और विकास ; ० हनारी प्रसाय ध्िदी १९६२
२ ~ रहन्दी साशत्य का अतीत : द्वितीय माग, आचार्य নিহণ লাঘসঅা লিগ ১ হং
User Reviews
No Reviews | Add Yours...