आदिकालीन हिन्दी रासो काव्य परम्परा में प्रतिविम्बित भारतीय संस्कृति | Aadikalin Hindi Raso Kaavy Parampara Mein Prativimbit Bhartiya Sanskriti

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Aadikalin Hindi Raso Kaavy Parampara Mein Prativimbit Bhartiya Sanskriti by लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Lakshmikant Varshney

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 2 धि उपलटल्धं सौ ग्रन्थौ को सस्या सद्प्राशिक है ॥ हल्य (६५५५०६५ हें ५४००६ लक ) के परस्ताधिका रास, अलिका देवो रार ओर्‌ अन्ताय रास । वस्तुतः माषा - ध्या न्तर्गत रासे काव्य-परभ्परा का प्रारम्भ बारइवों शतों से जौर মং कैलक अच्यह एहइमान को कि सदेशनासक ( समेह- रासय ) से माना जा सक्त छ साकृल्यायन ने से ६०१० ६० की एचना मानकर, স্থিম্থ্া का व्यन्बारा में स्रमाविष्ट किया है तथापि मुसिजिमविजय और दा हना न्ता सिक तथ्यो ॐ जश्ार्‌ पर्‌ अधिक्‌




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