प्रसादजी का अजातशत्रु | prasaadajee ka ajaatashatru
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ ]
का अशयन करना आरंभ किया था, उसका विकास ओर प्रचार
क्रमशः दोने लगा। जिस संमय॑ साहित्य-जगत में खड़ी बोली.
का जान्दोंलन चल रहा था उसी समय उनकी दो कविता-पुस्तके
प्रकाश में आयी-- “ महाराणा का महत्व ” और “ प्र म-पथिक ' ।
इन दो कांड्य ग्रन्थो ते काव्य-साहिस्य मे उथल-पुथल पेदा कर
दिया। आज भी आशा तथा उत्सग से भरा हुआ यह उदूधोध
कितने का कंठेहार बना हुआ है-
£ इख पथं छा उद्श्य नहीं है धरति सेवन मेँ टिक सदना,
किन्तु पवना ऽस सीप्रा पर जिसके धागे राह नहीं।!
--प्रंस पथिक ]
आल जयशंकर प्रसाद दिम्दी के युग-प्रक्तक कवि मनिः
जाते हैं। उन्हें संस्कृत के ब्रृत रुचिकर थे, इसीलिए उन्होंने
तुकंयिदीन कविताओं कीं रचना की परन्तु आगे चलकर इनके
छत्दों ने भी अपनां-अपना सागं निकांला । प्रसादज्ी कभी
पिंगंलानुसार न्दो मे, कभी उद् बहरों में, कभी स्वर्निर्मित न्धो
में और कभी संगीत क लय के आधार पर कविताओं कीं रचना
किया करते थे। सी समय खड़ी बोलती कं लिए आन्दोलन इभा
था मौर कवि अन्तर्मावना की प्रगल्म चित्रमयौ व्यंज्ञना फे
उपयुक्त स्वच्छुन्द नूतन-पद्धति निकाल रहे थे। पौंछे उसे नूतन-
पड़ुति पर असादजी ने भी कुछ छोटी-मोटों कविताएं लिली जी सं०
३६७५ (संच् १६१८ ) में “भरना? के भीतर संगृहीत हुई |
« झरना † कौं उम चोबीस कविताओं मे उस समय नूतन पद्धति
पर निकलती हुईं कविताओं में कोई ऐसी विशिष्टता नहीं थी जिसः
मर ध्यान जाता । दूसरे संस्करण में, जो बहुत पीछे संबल १६८७
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