अवध की बेगम | Avad Ki Bagam

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Avad Ki Bagam by के. के. मुकर्जी - K. K. Mukarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पटला श्रद्ध १७ (হালা গা हे । ) शजाउदौला--मेवाव मीर कासिम कैः खाथ श्राजदेर टौ गई, इसलिए नमर तुमसे मिल न सका । सुना है वेगम, इधर का सब इन्तजाम ? बहू वेगस--नही । शुजाउद्दीला--मीर क्लासिम मुझसे फीज मॉग रहे ह। मीर जाफर हराकर वे फिर अपनी सल्तनत पर कब्जा करना चाहते ह । में राजी बक्सर जाकर हम ऐलाने-जद्ड करेंगे। वहाँ फौज शरीर रसद परजने का पूरा इन्तजाम कर लिया गया है | बहू वेगम--में एक नाचीज़ ओरत, इन सब बड़ी-बड़ी बातो के न तो बनती हूँ, ओर न सममती हूँ। लेकिन इस स्वोफनाक काम में आपका ये देना वाजिव दै या गैस्वाजिब, यह आपके समभने की वात है । शीर कासिम ने पनाह मोगी ची , पनाह ইলা श्रापका एज या | लेकिन उनकी तरफ से किसी के खिलाफ ऐलान-जड्ड करना फ़र्ज ই या नहीं, प्ीचकर देखिए । सुना हे, मीर जाफर के पीछे एक बहुत बड़ी ताकत है। इस जद्ध का नतीजा क्यादागा;) कोद नहीं जानता। मुझे डर है कि आप झसिर तक मीर कासिम का साथ न दे सकेंगे, जिसका नतीजा द यह होगा कि उनकी ओर ज्यादा मुसीबर्तो का सामना करना होगा | शुजाउद्दोला--तुम जो कहती हो, वह सच है। लेकिन में जुबान हे चुका हैँ। में मजबूर हें। और इस लड़ाई में मेश फायदा भी कम नहीं ! बहू वैगम--कैसे !




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