गद्य कल्प | Gadya Kalp

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Gadya Kalp by Brahadat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी-प्रयोग पर चिन्तन सॉरत में देशभक्तो की देशप्रेम को परम पावन गंगा जिससे तकीं अन्तरात्मा स्तान बर पविज्न हुई ज्सशमि के प्रति पावत निष्ठा नगो बतों है- दिंग-प्रेम वें पुण्य झेत्र है लमीस त्याग से बिलपित जिसकी विव्य रश्मियों पाकर सतुध्यता होनी हैं विकसित था जिंग धाति मे लेटे बट हुए जिसकी गोद में आवास-निवास । सेन आभाव शिला सिलसा रहा जिसने हमें वालना- हुता-जीनी सयाभी उगकी सवा फरना हमारा परम फत्तरग है। माता प्रती है । पालभापा एक बात्ति हैं । प्रथम जॉयने बानी चितबत हैं । अपने दम परवरिश में इसे दौजस थात देने जाति हम ही मारतवासी हूं । अग्रेरी के प्रति सोहनस्वा सका प्रभान बडा दता हू। ऐक्वर्य या होम गालिय करन के लिए बस िन्वी के स्थान पर अप्रेंजी मे बोलना वड़्पल पते है । सत्य तो यह है कि भारतीय परिवेश में उह्ड कर अग्रेजी को मत व ते रहना और हिन्दी की दायम बनता देना हमारे इन्हीं दर्गों का मम हे फ़िर वे चाहे सासात्य संग के पलक्ार हो या प्राध्मापर अथवा कतत अधिवतरी वर्ग ब्यापारी या आएं वर्जे के नेता । शारत का यहू निर्माण पक और ना नौचोगिक करतत्त ला रहा ना दूसरों जोर भवतार श्रास्ति दे रहा है। परन्तु सा ना अग्रनी काय ब्यंत्रह्माग री उत्पन्न होती है । अभि से घरती से कुछ एसी अंदूट आओत्मीयता रहती है जो ग्ाखति के निवोरणा कहनें-करन को प्रदति करता हैं । आज म्धि- कान मे कुछ भारतीय बम में काल दारणाएँ जड़ जमा चुकी हैं 1 नेता प्रधिकारी व्यापारी कुछ जत्पसख्यक-्जिनकां जस्म इस फावन मादों े ठुबा यहाँ का मख-धन बहुण कर फलीचूण हूए रॉपिब तो. पथ के स् कि एन




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