विभिन्न राज्यों की हिंदी को देन | Vibhinna Rajyon Ki Hindi Ko Den
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
1012
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भहाराष्ट्रकी हिन्दीकों देन
मराठी बुन्देली
काय रे, कसा बसला आहे ? काय रे, कंसो वैठो ই?
, इसी प्रकार मराठी ' मापण पर्विमी हिन्दी ( बुन्देली ) “अपन ' के सदुश हैं जो खडी बोलीसे
भी प्रयुक्त होने रगा है । यथा--
मराठः--चला आपण चलू । बुन्देली--चलौ, अपन चले ।
मराठीमे राजस्थानीके समान ' न ' के स्थानपर 'ण ' की बहुलता है। मराठी की 'ल ' ध्वनि
राजस्थानीमे भी हैं जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है।
मराठीका बुन्देलीसे बहुत कुछ सामीप्य दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि वह अपने
क्षेत्रके उत्तरपूर्वमें उसके सम्पर्कमें प्रारम्भसे रही है। दोनोके साम्यके कतिपय उदाहरण नीचे दिए जाते है--
मराठीकी “होता ” भूतकालिक क्रिया बुन्देलीमें एकवचनमें “हतो है और बहुवचन में हते ?'।
मरारीमे उसका वहुवचन रूप होते ” ह । यथा--
सराठी एकवचन-- राम जात होता ।
बुन्देली ,, राम जात हतो ।
मराठ बहुवचन-- मुलगे जात होते ।
बुन्देली ,, मोडा जात हते ।
प्राचीन मराठीमें नोहि ' क्रिया खडी बोली नही ' है ' के अथेमे प्रयुक्त होती ह । बुन्देलीमें
इसी अर्थमं “ नही ' प्रचलित ह ।
हिन्दी-मराटी साम्यके अनेक उदाहरण दिए जा सक्ते है, किन्तु यह् लेखका मुख्य विषय न
होनेसे उसके कतिपय उदाहरण मात्र प्रस्तुत किए गए हैं। फिर भी सक्षिप्त विवेचनसे स्पष्ट हो जाता है
कि ये दो आर्य भाषाओं बहुत अधिक सन्निकट है।
हिन्दीपर सराठंका प्रभाव जहाँ मराठी हिन्दी भाषी क्षेत्रसे घिरी हुई है, वहाँ उसका प्रभाव
इस क्षेत्रकी हिन्दीपर स्वभावत पडा ह । यह प्रभाव नागपुर, छत्तीसगढ़ विदभं ओर हैदराबाद राज्य-क्षेत्रोमें
अधिक परिलक्षित होता है। नागपुर और विदर्भमे जो व्यावहारिक हिन्दी बोली जाती है,उसे हिन्दी-मराटीके
प्रमुख केन्द्र-स्थान नागपुरके नामपर नागपुरी हिन्दी ' कहा जाता हँ । डा० ग्रियसंनने अपनी “ लिग्वि-
स्टिक सवे भाग ६ मेँ नागपुरी हिन्दीका वणेन किया ह । उन्होने इसका क्षेत्र नागपुर जिला बतलाया
है और इसके वोलनेवालोम उन्दीको सम्मिलित किया ह, जिनकी मातृभाषा हिन्दीका कोई रूप है। उन्होंने
नागपुरी हिन्दोका जो उदाहरण दिया है, वह ऐसे परिवारका है जिसकी मातृभाषा बुन्देली हैं । ग्रियसेन
ने यही भूल की हैं। नागपुरी हिन्दीका क्षेत्र नागपुर ही नही, विदर्भ तक फैला हुआ हैं और इसे
बोलनेवाले हिन्दी-भापा-भाषी ही नही, अहिन्दी-भाषा-भापी भी है। वास्तवमें यह व्यापारी क्षेत्र तथा
वाजारमें विभिन्न भाषा-भाषियोके मध्य विचारोके आदान-प्रदानकी वोली है!
मराठी क्षेत्रमं हिन्दी-सचारफे कारण
दक्षिणापथर्मे हिन्दीका प्रवेश मध्यदेशीय भाषा-विकासकी एक সুজা হী है। महाराप्ट्रमे
शक
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