सोवियत रूस में भारत के क्रांतिकारी | Soviet Rusia Me Bharat Ke Krantikari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पष्टरोष पवो पः उपनियेशडाद संदधीलेनिन के हिदि िन्दे गभ्युनिष्ट
इंटरनेशनल दो दूगरो भोप्रेए ने धनुमोदिव विया य--ने तद से अव सक पूरदी
देणो मे कम्युनिस्यो की गतिदिधिपो क धरूलध्रू वसतो को निर्धारित বিমা ।
1918 व 1921 थे: मध्य उत्पीशित पूरब के जो लागरिक सोवियत गणराज्य
में थे उनके मध्य कम्युनिस््ट आंदोलन विकसित होने छगा। इसका ऐतिहासिक
महरद इस बात में तिहित था कि यह चीन, भारत, ईरान, तुर्षी एक कोरिया में
एक शांय खदे समय तक चलने वाले राष्ट्रीय कम्युनिस्ट पार्टियों की হযাথলা के
कार्य की नीव रखने की प्रक्रिया का प्रारभिक किन्तु अनिवार्य तस्व था। इससे पूरी
तरह रपष्ट होता है कि एशिया के कभ्युनिस्ट आदोसन ने अत्यंत महत्वपूर्ण सोत--
यथपि यही एकमात्र श्लोत नहीं था--का विस्तृत अध्ययन कितना अपरिद्ठायं है :
अगतूबर काति, सोवियते गणराज्य, सेनिन तथा कामिटनै से यह् सोत सीधा जुड़ता
था। इस तरह के अध्ययत के बिना, सोवियत सीमाओ के निकट पूरद के देशों की
दुम्युनिस्ट पार्टियों के उद्मव एवं विकास वी सही समझ प्राप्त कर पाना एकदम
असभव है। इस प्रकार के महत्वपूर्ण कायंभार को पूरा करने के लिए यह आवश्यक
है कि उन कम्युनिस्ट समठमो--भारतीम, चीनी व तु, केवल बुछ ही नाम सेने
हों तो---जो अपनी राष्ट्रीय कम्युनिस्ट पाटियाँ निभित करने के लिए कार्मिटनें के
नेतृत्व में तथा सोवियत गणराज्य की सहायता से जूश रहे थे, के अनुभव को वस्तु-
निष्ठ ऐतिहासिक पडताल की जाए।
प्रस्तुत पुस्तक मे भारत के कम्युनिस्ट आदोलन, तथा कुछ सीमा तक अन्य
पूरब देषो के कम्युतिस्ट भादोलन, के उद्रय पर महाने भवतूयर क्राति के प्रभाव के
कूपो तया तेरीकौ का गध्ययते प्रस्तुन किया गया है । इसमे रबी राष्टरीय काति-
कारियों के विभिन्न समूहो--श्रमुखबतया सोवियत गणराज्य मे प्रवासी भारतीय
पयूद्वों--के विचारों एव कार्द-कलाप की परीक्षा, उतके वैचारिक विचार--जिसने
उनके निम्न पूंजीवादी क्रातिकारी राष्ट्रवाद के दर्शन को माक्सवादी दर्शन मे बदल
दिया--का अध्ययन तथां इस विकास की मुश्किलों व वलिदानों का विश्लेषण
निद्वित हैं। यही कारण है कि सोवियत गणराज्य मे भारतीय कातिका री प्रवासियों
को एक ऐसी उल्ले खतीय सामाजिक परिधटता के रूप मे देखा गया है जिसने भारत
पर अवतूबर क्राति के विराट प्रभाव को उद्घाटित किया तथा भारतीय कम्युतिस्ट
आंदोलन के तत्वों को बढ़ावा दिया। भारत में लगभय उसी समय सबसे पहले
कम्युनिस्ट प्रकट हुए--न केवल्न राष्ट्रीय क्रातिकारियों के बीच से बल्कि भारतीय
राष्ट्रीय काग्रेस के वामपक्ष द मद्दूर सघो के पदाधिकारियों के बीच से ।
भारतीय कम्युनिस्ट आदोलत की आरंभिक अवस्थाओं मे उसकी विशिष्ट
राष्ट्रीय विशेषताओं के साथ-साथ दे विशेषताएं भी दिखाई पड़ती थी जो कि
सोवियत रूस की सीमाओ से लगे पूरबी देशो में उसी समय तया समान
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