काव्यालंकार सूत्रवृत्ति | Kavyaalankar Sutravritti

Kavyaalankar Sutravritti by आचार्य वामन - Aacharya Vamanडॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

आचार्य वामन - Aacharya Vaman

No Information available about आचार्य वामन - Aacharya Vaman

Add Infomation AboutAacharya Vaman

डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

No Information available about डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

Add Infomation About. Dr.Nagendra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रीति के स्वरूप फो और स्पष्ट करते हुए यामन मे लिखा है इन तीन रीतियों फे भीतर फाग्य इस হণ অমনি হী লামা है जिस प्रकार रेग्गान्नों के भीतर चित्र ।!* इन तीन रीतियों (वैदर्भी, गौदीया, और पांचाली) में से चंदर्मों हो ग्राद्य है ।* इसमें दो थर्य-गुण-सम्पदा फा पूर्णतया ध्ास्वाइन किया जा सफ़ता दै। उसके उपधान (शाश्रय) से थोड़ासा अर्थशुण भो মহান (चमरकारपूर्ण) हो जाता है। सम्पन्न झर्थगुण फा लो फट्दना ही क्‍या ।3 उपयुक्त विवेचन से कतिपय स्पष्ट निष्कर्ष निकलते हैं। काप्य मूलतः पद्रचना दै--अर्थाद्‌ यामन ने वस्तु और रीति (खलो) मे दीति (कस) को हो प्रधानता दौ है । रति धा स्वरूप বন কত মাহা ছাঃ चिध्र में जो रेखा फा स्थान है यही कास्य में रोति फा कास्य उसी में নিবিম रहता है ; पस्तु--जिसके लिए यामन ने अरथंगुणसम्पदा शब्द फा प्रयोग किया है, उसी के भाश्रित दै--रीति के उपधान से हो उसका सौंदर्य निखरता है । इस प्रफार चामन वस्तु को रीति के आाधित मानते ई--परन्तु थे यस्तु तस्व फा निषेध नहीं करते--उसका एथक श्रत्तिर्व वे नि स्पदे स्वीकार फरते ट: उन्होंने इसीलिए शर्थगुणसम्पदा और আবাল হী परिमाण-सूचक शब्दों फा श्रयोग फिया है। यस्त और रोति के सापेजिक मइस्व के यियय में साधारणतः चार सिद्धान्त हैं : (१) ५क सिद्धान्त तो यह दै फिफास्य का मूल तत्व चस्त (माव तथा विचार) तत्व ही है: रीति सर्वंधा उसो के भाश्रित है । रोति केवल चाहन अथवा माध्यम दवेज्ञों चस्तु को पृर्णतया अजुवर्तिनी है। भरद्दान कास्यचस्ठ श्रनिवायतः महान्‌ खो को शपा फरतो है । छुद्द धस्तु का भाष्यम लत हो दीगा । स्वदेश-विदेश के श्राचीन आदायों का मायः यही मत रदा है । प्राचीन অহ कान्य एस सिद्धान्त फा उदाहरण है । यूनान के प्रसिद्ध नाज्यकार देस्का- इलस ने श्रत्यन्त प्रवत्न शब्दों में इसफी घोषणा ष्हीथी। २ पनास विसषु रीतिपु रेखास्विव দিন বাল্য प्रतिध्ितमिति | तासा प बया ११४ २ स्यामथंयुणप्म्पदास्वा्ा मवतिं ५२०॥ तद॒पारोदाद॑गुणलेशो$पि ॥२ श॥ त्तदुप्रभानत३ खल्वर्थमलेशो5पि स्वदते । इ किमंग पुनरथयणसंपत्‌ । [काब्यालंकारसज्बृतिः (अथम अधिकरण))] (८१०)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now