सिद्ध हेम शब्दानुशासन का अध्ययन | A Critical Study Of Siddha Hemashabdanushasan

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A Critical Study Of Siddha Hemashabdanushasan by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना झापा के द्यद्धज्ञाल के लिपे व्याकरणशान परमावश्यक है। घातु और प्रत्पण के संश्सेषण पृथ विरक्तेपण हारा सादा के श्राश्ततिक गट का विधार स्पाकरण सापदेस्द में ही ढिया लाता है। कदब और शन का सुष्परिषत अर्जेन करता ही स्पाकरण का उद्रेश्य है! हारदों की स्थुत्पत्ति पूर्थ उलक निर्माण थी प्राजबस्त प्रद्धिया के रहस्प का ४द्धारत प्याकरण के द्वारा दी दोठा है। बह झस्दों के दिमिकझु झुपों के सीतर जो एक सूकत सजा था पातु मिद्दित रहती है उसक॑ रुदुरूप का सिश्षप और उसे पल्य ओकर पिपिष शफ्दों क वजिर्माण की मइनौद प्रकिया उपस्थित करता है साप ही भागु और प्रस्कर्षो के जक्ो का मिप्नप भी इसी के द्वारा दाता है। संक्षेप मैं प्याफरण साथा छा भभुप्ामम कर उसके विस्तृत सान्नाभ्य में पहुँचाले के सिपे राजपप का जिमोंथ करता है। सेंस्कूस भाददा में पाकरण के (अगिता इत्त धाकक्‍रायन कापिप्तति খাল पारिति कमर পল জী প্রচ वे लाई शारिदक प्रसिद् লাল जाने हैं। औल सम्प्रदाव में देदतल्दौ शाकद्धापभ देमइस भादि ক बेबादरस हप है! देवनन्दी ने अपने भास्दावुशासन में अपने से হু तुः क्ेगादानों কা বন্য ফিদা ই: (१ ) गुणे प्रीवक्तस्याउखियाम्‌ ( १४३४ )--हेदाबिति অলতি। अपष्रीढिरे पुरे इृती ऋरीइत्तरवाइापंस्प मतेन का विभन्द्रिमंब्रति | लल्येषों मलेब इतादिति मा । प्रा--जाइयाद्रद्' आादुयेन बद्धा। ( ६) कृपूपिश् यशोसद्रस्थ ( ३१३९६ )-कृश्ृपिरझश इत्पतेग्पा भयम्‌ मभि ब्ोमदस्पाशायस्थ मनन 1 (8 ) रादूमूतबस ( ३४४८३ )--समाप्रष्दास्ताए विदृत्तादिषु पहन स्वर्थषु रदो मदति भूलबणेराचायष्य मयने । (ক) যাই इनि प्रमायद्रस्य ( २।११८ )--रातिषष्दएय हनि জী ঘুলাগালা হলি पमाचम्यरयाचापरब मनेन ! (५) गत्ते: सिद्धसेनस्प (७७१७ )--देच्गॉलनिमिवसूदरण परसद ছাল মহ্গলি লিজলিলহন্ান্বার্থকধ মল 1 ( ९ ) चतुए ये समम्दभद्॒स्य ( ५७४१७ ১ ছাখী ६ इत्यादि जनुषं समग्तप्द्ाआरंएब सत्तेव सबति मन्दिरं म्मे}




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