अकबरी दरबार [भाग ३ ] | Akbari Darbar [ Part 3]
श्रेणी : इतिहास / History, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ७ এ
कांक्षाओं का पका फैला हुआ গা | ज्ञान और बुद्धिमत्ा का संसार-
दशक दर्पण हाथ सें था! नए पागलपन का शोर कान से पहुँचने
लगा और हर काम से रुकने के लिये जोर करने लगा । उन्दी
दिलों ज्ञान-सस्पन्न बादशाह ने झुझे स्मरण करके एकान््त के कोने से
घसीटा; आदि, आदि 1
अव्लुलफजल ने अपने पिता के साथ साथ शज्ुओं के हाथों
भी बड़े बड़े कष्ट सहे थे । उनका अन्तिम आक्रमण सबसे अधिक
कठोर और सीषण था । उसका कुछ विवरण शेख मुबारक के
अकरणा में दिया गया है । मुछा की दौड़ ससजिद तक । शेख
खुवारक तो भास्य सें धे इष्ट कष्ट भोगकर फिर अपनी मसजिद
में आ बैठे । उस ज्ञानी इजद्/ को कभी सरकारों ओर दरवारों
का शौक नहीं -.हुआ । पर इन होनहार युवकों को प्रताप ने बैठने
न दिया । उनके मन सें अपने उणो के भ्रकाश की कामना उत्पन्न
इद । आर सच भी है, चन्द्रमा ओौरः सूय च्चपना प्रकाशा क्योंकर
समेट लें ? लाल और पुखराज अपनी चमक-दमक किस तरह
पी जायें ? इसलिये सन् ९७४ हि० में शेख फेजी बादशाह के
दरबार सें पहुँचे । सन् ९८१ हि० में अव्बुलफजल की अवस्था
बीस वर्ष की थी, जब कि उन पर भी ईश्वर का अलम् इच्मा ।
अजब देखना चाहिए कि उन्होंने इस छोटी अजस्था सें इस इश्वरीय
देन को किस सुन्दरता के साथ संभाला 1
अब्बुलफजल अकबर के दरबार में आते हें
अकबर के साम्राज्य का निरन्तर विस्तार होता जाता था
आर उस साम्राज्य के लिये समुचित व्यवस्था की आवश्यकता
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