अकबरी दरबार [भाग ३ ] | Akbari Darbar [ Part 3]

Akbari Darbar [Bhag-3] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ এ कांक्षाओं का पका फैला हुआ গা | ज्ञान और बुद्धिमत्ा का संसार- दशक दर्पण हाथ सें था! नए पागलपन का शोर कान से पहुँचने लगा और हर काम से रुकने के लिये जोर करने लगा । उन्दी दिलों ज्ञान-सस्पन्न बादशाह ने झुझे स्मरण करके एकान्‍्त के कोने से घसीटा; आदि, आदि 1 अव्लुलफजल ने अपने पिता के साथ साथ शज्ुओं के हाथों भी बड़े बड़े कष्ट सहे थे । उनका अन्तिम आक्रमण सबसे अधिक कठोर और सीषण था । उसका कुछ विवरण शेख मुबारक के अकरणा में दिया गया है । मुछा की दौड़ ससजिद तक । शेख खुवारक तो भास्य सें धे इष्ट कष्ट भोगकर फिर अपनी मसजिद में आ बैठे । उस ज्ञानी इजद्/ को कभी सरकारों ओर दरवारों का शौक नहीं -.हुआ । पर इन होनहार युवकों को प्रताप ने बैठने न दिया । उनके मन सें अपने उणो के भ्रकाश की कामना उत्पन्न इद । आर सच भी है, चन्द्रमा ओौरः सूय च्चपना प्रकाशा क्योंकर समेट लें ? लाल और पुखराज अपनी चमक-दमक किस तरह पी जायें ? इसलिये सन्‌ ९७४ हि० में शेख फेजी बादशाह के दरबार सें पहुँचे । सन्‌ ९८१ हि० में अव्बुलफजल की अवस्था बीस वर्ष की थी, जब कि उन पर भी ईश्वर का अलम्‌ इच्मा । अजब देखना चाहिए कि उन्‍होंने इस छोटी अजस्था सें इस इश्वरीय देन को किस सुन्दरता के साथ संभाला 1 अब्बुलफजल अकबर के दरबार में आते हें अकबर के साम्राज्य का निरन्तर विस्तार होता जाता था आर उस साम्राज्य के लिये समुचित व्यवस्था की आवश्यकता




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