प्रातः स्मरण सूक्तम | Pratah Smaran Suktam

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Pratah Smaran Suktam by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७) यत्यावती स्वत्तिनां सह भोवतुकामा' प्रीयया सहखहरिनामलसर्स जपाप ॥ ४ ॥ प्रातः श्रये श्रुतियुंतां रघूनाथमू्ति नीलाम्जुदोपलसितेतररतनीलोप । आए मुक्तमोक्तिकविशेषविभूषणादचा ष्येयौ स. मस्तमुनिमिजनसुक्तिेतुम्‌ ॥५॥य: श्छोक- पञ्चकमिद प्रयतः पठेद्धि नित्य॑ं प्रभात समये पुरुषः प्रचुद्ध: । श्रीरामकिंकरजनेषु स एव सुख्यो भूला प्रयाति हरिलोकमंन- ' न्यलभ्यस्‌ ॥६॥ | मा० दी° = मै प्रातःकाल्ुकृत नायक श्री रामचद कै मुखारविन्दको स्मरण करता हूं, जिप्त मुखपर मंद २ मुस- कान विलास रे है, भौर जिससे ( मधुरमाषि ) मीठी२ ' बातें निकतरही हैं, भर जिनका भाव विशाल है, जिनके दोः नों कानोंके चजचल कुरठलोंसे दोनोंकपोल शोभायमान होरहे : हैं, भर जिनका विशालनेत्र कानोंके গন্ধ पहुंचाहुआ भक्त जमेके नेबको सुख देरहा है॥ १॥मैं प्रातःकाल श्री खुनाथनीके , करकमलोंको भनता हूं, जो राज्षप्तोंको भय भौर अपने भक्तोंको




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