रजत शिखर | Rajat Shikhar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युवती
भावी की लेखा -सी !
युवक
कितनी बार शरद के रेखा शशि की मैने
एक ओर मूख की' रेखाओो से तुलना कर
उसे सदोष बताया है, तुमको कूई के
अपलक नयनो का विस्मय अधथित कर सादर***!
और तुम्हारी वेणी के चिर कोमल तम मे
गय कभी जव मधुके मुकूलो की सद्य. स्मिति
में मन ही मन तुम्हे हदय स्वप्नो के मुकुलित
प्रीति पाद मे भर लेता था, तब प्रसन्न मन,
तुम श्रनिमेप दृगो से मेरी मरोर देखकर
मन्द हास्य से तिज गोपन स्वीकृति देती थी 1 -
कह दो, तव क्या वहु केवल सन्त्वनामत्र धी,
या कोमल उर का सुमवुर् उपचार माच था?
युवती
जो भी समस्टो वह् केवलं कंश्ोरप्रणयथा।
अभी नही छूटी क्या मुग्ध तुम्हारे मन से
मेहदी की लाली -सी वहं कशोर भावना
जिसने निजं यौवन उन्मुख पच्छन्न राग से
था अजान रंग दिया कपोलो की ब्रीडाको ?
उस अवोबता को प्रमाण मानोये क्या तुम ?***
स्पर्श नहीं कर सकी तुम्हारे भावुक उर को
हाय, वास्तविकता जीवन की नित्य बदलती !
युवक
स्पदो नही कर सका तुम्हारे चचल मन को
हाय, हृदय का सत्य, कभी जो नही बदलता 11
युवती
आज प्रेम विषयक इन मध्य युगी, शुक जल्पित
उद्गारो कौ कीति तुम्हारे मूख से सुनकर
मेरा मन ग्रवसन्न, हृदय उद्दविग्गन हो उठा !
युवक्त
तव क्णो तुम मुको फिर से विस्मृत वसन्त की
याद दिलाने अ्रायी, ऋतु शगार सजा नव ?
वह क्या केवल कूर व्यग्य, उपहास मात्र था?
या नारौ उर कौ स्वाभाविक निर्दयता धी?
जित निगृढ निर्ममता की पाषाण शिला से
मायावी विधिने निमित की नारी प्रतिमा.
उसमे मृगजल गोमा, छाया कोमलता भर?
रजत शिखर / १६
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