हिंदी काव्य की कलामयी तरिकाएँ | Hindi Kavya Ki Kalamayi Taarikayen
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मीया
खींचती है | मीरा का हृदय प्रियतन्न के बियोग से व्याकुल तो है,
किन्तु उसमे शोक और विषाद के लिये स्थान नहीं । मीरा अपने
प्रियतम फे विरह में उदास और निराश न होकर इन्माद् के
आनन्द में नाचती ओर गाती है। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिये,
किं वियोग क वेदना ने उन्हें इतना अधिक बेदना शील बना
दिया है, कि वे -सतवाली बन गई हैं, और उनकी सारी वियोग-
वेदना श्रामन्द् के रूप मे परिणत हो उठी है । मीरा जब इस
आनन्द” को लेकर आगे चल्षती हैं, चच वे फिर किसी की चिन्ता
नहीं करतीं 1 वे इसी आनन्द के उन्माद में राज-प्रासाद को छोड़
देती हैं, बिष का प्याला ओठों से लगा लेती हैं, और डाल लेती
हैं, सर्पो की गले मे मात्रा । वास्तव मे बात तो यह थी, कि वहाँ
मीरा का अस्तित्त्व ही नहीं था। वे आनन्द में इतना विभोर हो
उठी थीं, कि उन्हे अस्तित्त्व का ज्ञान ही नहीं था-। वे एक पगली
के सश थीं | उन्हें न अपनी चिन्ता थी, और न संसार की ।
संसार की सीमाभों और श्र खलाओं का उनडी दृष्टि में कुछ भी
मूल्य नही था वे सब को तोड़ कर अपने प्रियतम के पास जाना
चाहती थीं 1 प्रियतम की लौ उनके हदय मे इस प्रकार समाई हुं
थी, कि उसके समक्ष उन्हे ससार मे कुछ दिखाई ही नहीं देता
था । मीरा की इस एकाग्रता का चित्र उनके इस पद में देखिये 1
आती रे मेरे नेनन बान पड़ी।
चित्त चढ़ी मेरे माधुरी मूरति उर विच आन गड़ी।
कब की ठाढ़ी पन््थ निहारूँ, अपने भवन खड़ी ॥
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