हिंदी काव्य की कलामयी तरिकाएँ | Hindi Kavya Ki Kalamayi Taarikayen

Hindi Kavya Ki Kalamayi Taarikayen by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मीया खींचती है | मीरा का हृदय प्रियतन्न के बियोग से व्याकुल तो है, किन्तु उसमे शोक और विषाद के लिये स्थान नहीं । मीरा अपने प्रियतम फे विरह में उदास और निराश न होकर इन्माद्‌ के आनन्द में नाचती ओर गाती है। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिये, किं वियोग क वेदना ने उन्हें इतना अधिक बेदना शील बना दिया है, कि वे -सतवाली बन गई हैं, और उनकी सारी वियोग- वेदना श्रामन्द्‌ के रूप मे परिणत हो उठी है । मीरा जब इस आनन्द” को लेकर आगे चल्षती हैं, चच वे फिर किसी की चिन्ता नहीं करतीं 1 वे इसी आनन्द के उन्माद में राज-प्रासाद को छोड़ देती हैं, बिष का प्याला ओठों से लगा लेती हैं, और डाल लेती हैं, सर्पो की गले मे मात्रा । वास्तव मे बात तो यह थी, कि वहाँ मीरा का अस्तित्त्व ही नहीं था। वे आनन्द में इतना विभोर हो उठी थीं, कि उन्हे अस्तित्त्व का ज्ञान ही नहीं था-। वे एक पगली के सश थीं | उन्हें न अपनी चिन्ता थी, और न संसार की । संसार की सीमाभों और श्र खलाओं का उनडी दृष्टि में कुछ भी मूल्य नही था वे सब को तोड़ कर अपने प्रियतम के पास जाना चाहती थीं 1 प्रियतम की लौ उनके हदय मे इस प्रकार समाई हुं थी, कि उसके समक्ष उन्हे ससार मे कुछ दिखाई ही नहीं देता था । मीरा की इस एकाग्रता का चित्र उनके इस पद में देखिये 1 आती रे मेरे नेनन बान पड़ी। चित्त चढ़ी मेरे माधुरी मूरति उर विच आन गड़ी। कब की ठाढ़ी पन्‍्थ निहारूँ, अपने भवन खड़ी ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now