हिंदी नाट्य - विमर्श | Hindi Natya - Vimarsh

Hindi Natya - Vimarsh by गुलाबराय - Gulabray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कान्य मेँ नारक का स्थान ९ [১০১১0000000 क्राबा पाए का क्राए। पक्ष जता वकाागआओ।ओ शा्तों ओर कलाओं की दृष्टि से भी नाटक का महत्त्व अधिक है। इसमें सभी कल्ाओं का समावेश हो जाता है। स्थापत्य ( इमारत बनाने की कला ), चित्रकला, संगीत, रृत्य, काव्य, इतिहास, समाज-शाघ् वेश-भूषा की सजावट, कपडो का रगना आदि सभी शां त्रर कलाघ्मों का आश्रय लिया जाता है । दशकों के सामूहिक सहयोग के कारण उसमें जातीय जीवन की एक छा दिखाई देने लगती है । इसके सम्बन्ध में नात्य-कला के आदि आचाये भरतमुनि ने ठीक ही कहा है-योग, कमें, सारे शाश, सारे शिल्प ओर विविध कायी में कोई ऐसा नहीं है, जो नाटक में न पाया जाय# | রা কন योगो नं ततमे नाव्येऽसिन्‌ यत्न इयते । सवंशन्नाणि रित्पानि कमणि विविधानि च ॥




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