हिंदी नाट्य - विमर्श | Hindi Natya - Vimarsh
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कान्य मेँ नारक का स्थान ९
[১০১১0000000 क्राबा पाए का क्राए। पक्ष जता वकाागआओ।ओ
शा्तों ओर कलाओं की दृष्टि से भी नाटक का महत्त्व
अधिक है। इसमें सभी कल्ाओं का समावेश हो जाता है। स्थापत्य
( इमारत बनाने की कला ), चित्रकला, संगीत, रृत्य, काव्य,
इतिहास, समाज-शाघ् वेश-भूषा की सजावट, कपडो का रगना
आदि सभी शां त्रर कलाघ्मों का आश्रय लिया जाता है । दशकों
के सामूहिक सहयोग के कारण उसमें जातीय जीवन की एक छा
दिखाई देने लगती है । इसके सम्बन्ध में नात्य-कला के आदि
आचाये भरतमुनि ने ठीक ही कहा है-योग, कमें, सारे शाश,
सारे शिल्प ओर विविध कायी में कोई ऐसा नहीं है, जो नाटक में न
पाया जाय# | রা
কন योगो नं ततमे नाव्येऽसिन् यत्न इयते ।
सवंशन्नाणि रित्पानि कमणि विविधानि च ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...