अवतारवाद मीमांसा | Avataaravaad mimansa

Avataaravaad mimansa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झवतारबाद मीमांसा। ५५ ने मेरा शिर काट लिया था भौर महादेव का लिंग शाप से गिर पड़ा था, वैसेही সাব विष्णु का शिर कटकर सुद्र में गिर गया! इन्द्रको सदस्न॒संगकी प्राप्ति हुई। वे स्वर्ग से पतित हुये श्रौर मानसरोवर में कमल में वास किया । ये सब दुःख के भोका हैं। दुःख कौन नहीं भोगता है ! अस्त देवी के कहने से देवता लोग एक घोड़े का शिर लाये और स्वष्ठा नाम शिहपीफों दे दिया। उसने उस सरको विष्णु के सर से ज्ञोड़ दिया और विष्णु भगवान जी उठे। इससे उनका ताम्र हयभ्रोर पड़ा । एक बार विष्णु के पास लक्ष्मी वैरी थी । उनके घुल को देखकर विध्णु घड़े जोरसे हँसे, लक्ष्मो बड़ी नाराज़ हुई 1 और धीरे से कद्दा कि হাহা হাহ गिर ज्ञाय | उन्हों के शाप से डनका शिर कटा था अब आपलोग यदां देखते हैं कि विष्णुज्नो मर कर जी उठे हैं। थे सुख दुगल के सोक्ता हैं. उन्हें सी शुभ अशुभ कर्म का फल सोगना पड़ता है। ये खब लक्षण जीव के हैं या ईएवर के हैं इसे पाठक स्वयं समभालें । इसमें अधिक बुद्धि लगाने को आवश्यकता नहों । इस कथा से सी थे जीव विशेष ही ठद्दरते हैं ईश्वर नहीं । विष्णु सगवान ब्रह्म का ध्यान करते हैः दे* भा० सकन्द १अ०८ रह्मा दरस्भयो देवा भ्यायत्तः कमपि भ्‌चम्‌। विष्णुश्चरस्यसादुप्रं तपो वषाए्यनेकशः ॥




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