सांख्य दर्शनम् | Sankhya Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-- . प्रधमाऽच्छय का ৯ १३
- छुयारेकदेशलब्धोपरागाल्न ध्यवस्था ॥ ४६ ॥ ( ९९ )
. दोनों के एकदेश में लख्घ उपंरत्षय से ध्यवस्था महों रहती 8
. यदि ऐश हो तो देह के बाह्य विषयों का उपशाग चैसे धहु पुरुष फे
কথ का हेतु हो, वैसे मुक्त पुरुष के बल्च का हेतु सो हो सकता-है,तव
` , भहु सुत दो भं व्यवस्था नह रहती कि फौन न्दु जौर फीन इकू है २९ .
दुष्टवशाञ्चेत् ॥ ३० ॥ (३० )
यदि भद्द से ( व्यवस्थर मानो तौ }-उत्तर~
न दुयोरेककालाउयोगादु पकार्यो पकारकभावाः ॥ ११॥ (३१)
'दीनों के एकफाल में योग न होने से ठंपकाये उपकारक भाव नहीं हो
सकता ॥ `
यदि फोई ३० परुत्नोक्त शड्डा करे कि भट्ट ( प्रारछ्य ) बश से देह की
. बाह्य विषयों का. उपरा बहु पुरुष के सम्राव मुक्त को भहीँ हो उकता,
- सो३१ वां सूत्रकह्ता है कि कत्ता पुरुष गौर भोका पुरूष ये दोनों খিক
के मत.में एकफालीन नहीं, पूर्वक्षण में कत्ता ( चित्त ) उत्तरघ्शभावी
भोक्ता से भिक्त है,तत्र दोनों (कर्ता भोक्ता) एफदाथ न रहे, इस दुशा में
दोनों स उपायं उपकारक भाष नंदीं हो सकता । जिस पर उपकार ही
` धह .दपकशायं भौर को ठपकार फर वह उपकारकः होता है। सजा फिर
. छाब कत्तों और भोक्ता एक काल में न हुवे, भिंक २ फालों में पूव पर भेद से
রঙ
, हवे কী ঘুইক্চায জী के भटृष्ट प्रारण्य फा उपकार उत्तरकोलस्थ भोक्ता
पर कैसे हो सक्ता है। इस. लिये घदृष्ट से भी व्यवस्था भट्ठों बनती ॥३९॥
= पत्रकमेषदिति चेत् ॥ है३ ॥ (११) .
यदि पुत्र के ( गर्भाघानादि संस्कार ) के के तुरुय ( फही तौ )-
5 আঘাঁজ অতি জাই फहे फि जैसे गर्मोघानादि संस्कारों से पुत्र पा करे
- . (संस्कार) पिता फरता है और उ६ खे पुत्र का उपंकार दोता है, यद्यपि पुपर
पचात काण मे भीर দিলা पूर्वकाल म ६, हौ कत्ता भोक्ता देने एककाल
में तहोंतौ भी एक करत्तों दूसरे भोक्ता का उपकार कर सकता है,ती दोनों
... सें-उपकार्थोपकारक साव फ्यों नहीं हो सकता ! तो उत्तर यह ই দি-
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