सांख्य दर्शनम् | Sankhya Darshan

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Sankhya Darshan by तुलसीराम स्वामिना - Tulsi Ram Swamina

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-- . प्रधमाऽच्छय का ৯ १३ - छुयारेकदेशलब्धोपरागाल्न ध्यवस्था ॥ ४६ ॥ ( ९९ ) . दोनों के एकदेश में लख्घ उपंरत्षय से ध्यवस्था महों रहती 8 . यदि ऐश हो तो देह के बाह्य विषयों का उपशाग चैसे धहु पुरुष फे কথ का हेतु हो, वैसे मुक्त पुरुष के बल्च का हेतु सो हो सकता-है,तव ` , भहु सुत दो भं व्यवस्था नह रहती कि फौन न्दु जौर फीन इकू है २९ . दुष्टवशाञ्चेत्‌ ॥ ३० ॥ (३० ) यदि भद्द से ( व्यवस्थर मानो तौ }-उत्तर~ न दुयोरेककालाउयोगादु पकार्यो पकारकभावाः ॥ ११॥ (३१) 'दीनों के एकफाल में योग न होने से ठंपकाये उपकारक भाव नहीं हो सकता ॥ ` यदि फोई ३० परुत्नोक्त शड्डा करे कि भट्ट ( प्रारछ्य ) बश से देह की . बाह्य विषयों का. उपरा बहु पुरुष के सम्राव मुक्त को भहीँ हो उकता, - सो३१ वां सूत्रकह्ता है कि कत्ता पुरुष गौर भोका पुरूष ये दोनों খিক के मत.में एकफालीन नहीं, पूर्वक्षण में कत्ता ( चित्त ) उत्तरघ्शभावी भोक्ता से भिक्त है,तत्र दोनों (कर्ता भोक्ता) एफदाथ न रहे, इस दुशा में दोनों स उपायं उपकारक भाष नंदीं हो सकता । जिस पर उपकार ही ` धह .दपकशायं भौर को ठपकार फर वह उपकारकः होता है। सजा फिर . छाब कत्तों और भोक्ता एक काल में न हुवे, भिंक २ फालों में पूव पर भेद से রঙ , हवे কী ঘুইক্চায জী के भटृष्ट प्रारण्य फा उपकार उत्तरकोलस्थ भोक्ता पर कैसे हो सक्ता है। इस. लिये घदृष्ट से भी व्यवस्था भट्ठों बनती ॥३९॥ = पत्रकमेषदिति चेत्‌ ॥ है३ ॥ (११) . यदि पुत्र के ( गर्भाघानादि संस्कार ) के के तुरुय ( फही तौ )- 5 আঘাঁজ অতি জাই फहे फि जैसे गर्मोघानादि संस्कारों से पुत्र पा करे - . (संस्कार) पिता फरता है और उ६ खे पुत्र का उपंकार दोता है, यद्यपि पुपर पचात काण मे भीर দিলা पूर्वकाल म ६, हौ कत्ता भोक्ता देने एककाल में तहोंतौ भी एक करत्तों दूसरे भोक्ता का उपकार कर सकता है,ती दोनों ... सें-उपकार्थोपकारक साव फ्यों नहीं हो सकता ! तो उत्तर यह ই দি-




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