स्वानुभवसार | Swanubhavsaar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : स्वानुभवसार  - Swanubhavsaar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका ] (9) अब शद्वीतवादि पुरुर्षों सैं मेरी थे माथेना है कि आप अद्वैलानुभवो हेवें से। इस ग्रन्थका मनन अद्रौ तालुभव मैं परस उपकारक होगा यातत प्राप আ- थश्य ही इस ग्रन्यदरा अवलोकन रर । शरोर खिचारसागर सथा दत्तिप्रभाकर चन ग्र्थौके पडे इवे पुरूषो জু सो चाहिये कि इस ग्रन्यका पठन वश्य ही करें फाहेतें कि इन ग्रन्थों से अहाँ २ अनुभवे विषय ज्यो मिणेय शेष रह गया है जो इस अन्य मे लिखा है ॥ अब ये कोर समुभोे कि इस ग्रन्थके ६ भाग हैँ सिनसै मथल साग से न्‍्यायमतका खिवेचन নিলা ই काहे क्कि न्याय श्ासत्रका আল ইল ই ই सानि करि बेदन्त के ग्रन्थ से इसके सतका खरठन किया दे परन्तु उच अ्न्थकारों के ये विचार नहीं किया कि गरतस ऋषि ओर कणाद ऋषि स- येक येगी रदे उनका नत द्वैत क्षिं हसक दत मत तो श्रुति ध्रिरुडुहिया- सैं हमने उनका भत ओर श्र्‌ ति इनकी एकवक्यता करिके उनका नत इस भागमें अद्वीत दिखाया है ओर उनका मत भौत ह इ सस उनके सूत्र सी प्रसार दिष्य है विदुज्जन सका साद्यन्त अयलोकन करः ॥ ओर इस ग्रन्षके द्वितीय भाग सै जरविद्याके स्वरूपका विसेचन सलि. या है से अविद्या तस जैसी आवरण स्वभाव नहीं है किन्तु सच्चिदःनन्‍्द ब्र्मरूपा है ये थे श्रतति युक्ति आर आअलुभव इनलें सिद्ठ॒ किया है से विद्वज्जन यष्क! वी साद्यन्त अवलोकन करे झोर एसके दतीय भाग में ज्ञान के स्वरूप का विधेचन किया है से! आन दृत्ति रूप नहोँ हे किन्तु त्ति 'बिलक्षण है से! विद्वज्जन याका यी स्यन्त अवलोन करै । इसमे টা कहाँ सुरुषस्वभावसुलभ प्रासादिक लेख छेजे ते कृता- रमानुभयव पुरुष शोचन थी करें परन्तु कपा फरिक उस स्वकीय शोधन लेख ` चू सदौय दर गोचर यो कूर सेधैःये सेरी प्रायेन है ॥ शुभस्‌ ॥ श्रीराससभ+तत्वोपदे्टा श्भैजयपुरौ यर्सैस्छतपाद श ालाध्यापङ श्रीद्धी.- सचिक शोद्भव परिडत गेापीजायशसेा 11 शुभम्‌ ।। 3




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now