वेद विरुद्ध मत खंडम | Ved Viruddh Mat Khandam
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ ॥
~ শই-(সঞ ) देवन देवलक शब्दाभ्यां न गृहते १ ॥
४४--( उ* } मूत्तिपूजारीस्तदधीन जीविकावतश्चेति व्रूमः ॥ -
` नैवमुचितेवक्ुम् ॥ क्थ; “यद्धितं यक्षशीलानान्देवसवन्तद्विदुदटैधाः ॥ श्यज्चनानतु
यद्धित्तमा्रं तल्चक्ञत इति मुसाच्यविरोधास् ॥ यज्ञशीलानां यक्षा यद्धित्तेत-
देवशभ्देनोच्येत तल्लाति ग्ृद्गाति स्वभोजनायथथ सोध्यन्द्रेचलो मिन्ध; ॥ यो यज्ञ
यद्धनैतश्चोर्यति .स देषलकः ॥ छत्छितो देवलो देवत्तकः कुत्सित इति स्चेण फ
| अ्रत्ययविधानाद्भवक्छरतोर्थोऽन्ययेति वेदितन्यम् ॥
४४--( भ्र० ) वरस्य जन्ममरणे भवत धाहोस्विक्न १॥ ।
- ४६--( उ० ) अगप्रारते दिव्ये जन्ममरणे भवतो नान्ययेति- स्ीक्रियते ॥
गक्तानामुद्धाराथेदुष्टानां विनाशा्ेन्तथा ` धम्मेस्थापनाथेमधसमनिभूलायेन्च ॥ नेष
स्त्याय्यद्भुरमात्सवेशक्तिमत्वात्सर्वान्तर्यामित्वादखरडत्वात्सर्यन्यापकत्वाद्नन्तत्वाक्षि्कम्प-
त्वच्िश्टरस्येति सर्वेशत्तिमान्द्ीश्वरोऽस्ति स वन्याय्यङ्कयेङ्ककतु समर्थोऽस्त्यखद्ा-
४३-- प्र० ) देवतै श्रौर देवलकर शब्दों से किप्का महण करते हो १ ॥
४--( 3० ) यदि कहते हो कि यूर्तिपूननें ओर मूर्तिपूजा से - जीविका
कपेशाले देवह और देवलक कहाते हैं तो ठीक नहीं क्योंकि धमशास्र में लिखा
है कि नो यज्ञ करमेवालों का .धन है वह देव ओर यज्ञ न करनेवालों का
घन आसुर बहाता है, देव नाम यज्ञ के धन को अपने भोजनादि के लिये लेने
` घला देवल निन्दति कहाता है यहां व्याकरण रीति से मध्यम् पद् स्वशब्द का लोप
हो जाता है | और नो यज्ञ के धन की चोरी करता है वह देवलक अतिनिन्दित
कहाता है क्योंकि व्याकरण के ( इत्सिते ) सूत्र से निन्दित अर्थ में क प्रत्यय
होता है इससे भाप का किया मथ मिथ्या दै यह जानना चाहिये || -
४४--६ प्र० ) ईश्वर के जन्ममरण होते हैं वा नहीं ! ॥ ।
४ ६-(.उ० ) यदि यह कहते दो कि আগান্কণী महष्यादि के न्म्रण से
विलक्त दिभ्य जत्मम्रण॒ ` होते है प्रन्यथा नदी, यह स्वीकार दै, कर्योकि मर्तो के
| उद्धारदु्टौ के विनाश, धमै की स्थापना जरर अर्को निर्मूल के के तिथि
| चष्वामाविक जतम द्वं धारण करता है तो दीक नहीं करयोकि ईश्वर परशक्ति
| मान्, पवौनतरयामी, श्रलरड, सर्वेव्यापक,. अनन्त और निश्वेल निष्क है । जते
ईश्वर सर्वशक्तिमान् है तो वह प्तव स्याययुक्त कार्य बिना सहाय के करने को प्रमर्थ है
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