वेदोपनिषत अथवा औपनिषद-श्रुतिसंग्रह | Vedopanishat athava Aupanishad Shrutisangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओश्म अथ जल्लोचोपनिवेस्‌. वा व्रहनोत्तरोपनिषत ( यजुः २३1 ४५-६२ ६३-६५ ) भ-कःसपिदेकाकी चरति क उ स्िञजायते पुनः । फिसिद्धिमस्य भेषजं किम्बावपनं पत्‌ ॥१॥ उ-सुय्ये एकाकी चरति चन्द्रमा जायते पुनः। उभ्नििमस्य भेषजं भूमिरावपनं मदत्‌ ॥ २॥ भरन--१. ( कः +-स्विद्‌) कोन सा (एकाकी ) अकेखा (चरति) -विचरता है । २. ओर ( कः + सिद ) कोन सा ( पुनः ) फिर. बार चार (जायते) पैदा होता है । ३. ( हिमस्य) सरदी की, जडता की, अज्ञान की (भेषजं) दवाई (किं+-ल्िित्‌) कीन सी दै । ४८ +ड) -कौन सा (महत्‌) वड़ा (आवपनं) वोते तथा काटने का स्थान है ॥१॥ उत्तर-(१) (सूर्यः) सूर्य (एकाकी) अकेटा (चरति) विचस्ता है । (২) (चन्द्रमाः) चन्द्रमा (पुनः) फिर, वारवार (जायते) जन्म लेता है (३ (अग्निः) आग; ज्ञान (हिमस्य) जडता आदि की (मेषजं)




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