वेदांत कुँजी | Vedant Kunji

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Vedant Kunji by भानुप्रताप शुक्ल - Bhanupratap Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) अवगुर्णों दोषों को देखने सुनने एवं कहने से जो दुष्परि- णाम होता है, उसका अच्छी प्रकार से ग्रतिपादन किया गया है। দি पाठक मुमुच्त बन्द ! विदित हो कि इस वेदान्त-कुज्जी! के प्रकाशन का भार श्रीस्वामीणी के अनन्य भक्त, उदार-चेता, महानुभाव, श्रीमान्‌ बाबु हरीराम जी अग्रवाल, रईस तास्लुकेदार मबैया इलाहाबाद, अपने ऊपर लेकर पुण्य तथा कीर्ति के भाजन बने हैं| आप घड़े ही धम्मेपरायण तथों साधुसेवी एब' प्रजा- पालक पुरुष हैं। ईश्वर आपके जगत्‌.फल्याण की भावना की द्धि करे । प्रनानां विनयाषोनाद्रक्षणाद्‌ भरणादपि । त्वं पिता पितरस्तासां केवलं अन्म-हेतवः ॥ , प्रजाओं के विनयाधान ( शिक्षाप्रदान ), रक्षण तथा भरण-पोषण से आप ही पिता हैं। आपकी ग्रजा जिनको पिता समझती है, थे तो केवल जन्म के ही कारण हैं | साधु-सन्त भक्ते हवै प्रजा अलुरक्ति होवे, रमारानी सहित रमेश रमते হই।




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