हंसनाद [भाग २] | Hansanad [Part 2]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हसनाद । [७]
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फिर उखुनिये-
अहिंसा परमो धर्मः अहिंसा प्रम तपः |
अहिसा परमो लाभ» हिसायां, परमोह्यघः ॥
अर्थात् अरि छ्य परम धर्म है, अर्दिसा परम तप दै अर्दिसादी
प्रम लाभ ६ श्री हिताकरना परम पाप है।
एथ्वी मण्डल भर में किसी धर्मवाले हिंसा की शाज्ञा नहीं देते
अर्दिता का सबही प्रातिपादन फरते हे, देखिये में पहले आपको अपने
सनावनधम से अद्दिसा का मण्डन करता हूं फिर अन्य मतावलम्बियों
का सिद्धान्त देखलाऊंगा ।
मनुस्मृति का वचन है--
योऽहिंसकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखेच्छया ।
स सी्वश्च खतद्चैव न कचित् सुखमेधते ॥
अयात् जो कोई अपने सुख के छिये पराये निरपराघ जीवोंको
मारडालगा है वह इस लोक में ओ परलेक में घुख कुछ भी नहींपाता,
तास््य यद कि हिंसक (जीवइच ) इस लोक में जीवते हुए पय्यन्त
. नाना प्रकार के रोगों से दुखी रहता है, औ ८ खतदेचेव ) मरजाने
के पश्चात् परलोक में नरक का भागी होता है! यदि किसी मासा-
हारी को यह शका द्यो कि मनु ने तो फेवक जानमारना हा निषेध
किया है मास खाना तो निपेध नहीं किया इसाशिये कोई जान न मारे
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