परीक्षामुखसूत्र प्रवचन [भाग 15, 16, 17] | Pariksha Mukhasutra Pravachan [Part 15, 16, 17]

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Pariksha Mukhasutra Pravachan [Part 15, 16, 17] by सहजानंद महाराज - Sahajanand Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पञ्चदक्ष भाग [{ १३ ष 1 तमतियोकी बात, विरोध को बात मान लेना चाहिए। इससे साध्य साधनका सम्बन्ध केवल प्रस्तित््व माननेपत भ्रनुमानकी प्रहतिका कारण नही होता । लिड्भलिज्ि सम्बन्धकी भ्रनुमान प्रवृत्तिहेतुभूततामे दिये गये शेष विक- ल्पोका निराकरण यदि कहो कि साध्प साधनका सम्बन्ध देखने माजसे प्रनुमानकी प्रदत्तिका हेतु हो जाता'है तो किसीने बाल्यावस्थामे भ्र्ति भौर धुवाका सम्बन्ध जाना था, भ्रव बद्ध दशाभे जहाँ कि बुद्धि सठिया जाती है, स्मरण भूल जाता है ऐसी हानत में धुमफे देखनेसे भ्रग्निका ज्ञान हो जाय पर प्रत्यन्त इद्ध जहा सब वाते भरून जाती है, कोई बात याद ही तही रहती ऐसेके भी तो घुवा देखनेसे भ्रग्तिका ज्ञन नही होता यदि फहो, कि उनको भी हो जाता जब कि स्मरण होता उप समय धुमके देखनेसे भ्ररिनिका क्षन इद्धोक्नो हो जायगा । तो कहते हैं कि तब तो स्मरणज्ञान प्रमाण हुआ यही तो सिद्ध हुमा । बतलावो कितनी भ्रवेरक्ती হল है कि रप्रति ज्ञान पूर्वक अनुपानकों तो मादा प्रनुमातकी प्रमाणता स्घृतिकी बदौलत है और फिर स्मग्णका निरावरण करें तो यह कितनी देहुदी बात है । यदि स्मरणका निराकरण किया जाता है तो प्रनु- मानका भी निराकरण हो बैठता है। ्रनुमान ज्ञान बने इसमें कारण है स्मरण शान झौर स्मरण ज्ञान तो मानते नही, तब फिर श्रनुमान ज्ञान कते बन सकता दवै | समरोपव्यवच्छेदक होनेसे स्मृत्ति ज्ञानकी प्रगाणरूपता स्मरण ज्ञात प्रपाणभूत है क्योकि स्मरण ज्ञान सशय লি अ्रनध्यवसाय झादिक ज्ञानका লিহা- करण करने वाला है इस काररा झनुमानकी तरह प्रमाण है। जैसे प्रनुमान ज्ञान सशय विपयंय, भ्रनध्यवस्तायका निराकरण करअनेपे प्रमाणभूत है तो यही बात स्मरणमे समभिये 1 इस प्रसगमे यह भी नही कह सकते कि स्मरणका विषयभूत जो सम्बन्ध भादिक है उसमे समोरोप ही नही हो सकता तो सशय ধিণধয प्रनष्यवत्ताय नही हो सकता । फिर कैसे निराकरण किया जाण। स्मरण ज्ञानमे भी किमीसे परावर सशय, विपर्यय अनध्यवस्ताथ हो सकता है। जैसे क।ई पुरुष स्मरण करना चाहे और स्मरण में नही झाता तो यह भ्रनध्यवसाथ हुआ, कोई भजन बालते हुएपरे बोचमे भूल गया भव चह रपाल बनाता है भर व्यालप्रे नहों श्राता है एक सामान्य षी फलक तो रहती है कुछ ऐसा सा, पर ख्याल में नही झञाता | कभी कभी स्मरण उल्टा भी हो जाता है । कभी स्मररामे ही सशय हो बैठता, यह बात नहीं कह सकते कि स्मरणा ज्ञानमे स गय, विषयंय भ्नध्यवसाय नही होते तो भ्रनुमानज्ञान बनाते समय श्ष्टान्त क्यो दिया करत जैसे शनुभान ज्ञान किया कि इस, पर्येतमे भरिन है, घुर्वाँ होनेसे, इतना सुनकर दूसरा सुनने वाला न माने तो, वहाँ हष्टान्त देता है प्रथवा स्वय भपने ज्ञानको जिदद हृढ़ करनेके लिए वह स्मरण करता है भोह ठीक है, रसोईघरमे भी तो यही गात है कि ध्वा देखो भौर वहां श्रग्नि थौ तो भ्रनुमानज्ञानमे जो पाघम्यका दृष्टान्त दिग जाता उमसे सिद्ध है कि स्मरणमे कोई कमजोरी आयो, उसको दुर $रनेके लिए उप्र स्मरण




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