सरल नीतिशास्त्र | Saral Nitishastra

Saral Nitishastra by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ 2) - प्र०६ धम के लिये नतिकता का कया मृल्य हे ९ क्‍या धर्म के लिये सतिकता आवश्यक है 03, 10. 0.9139100. 15120121105 (9001১00. प्त्रा लज्जा. [2186०88 11119 51800177600) 101072009 00৮ 100 101700015 90161151015 10. 161900 $0 10012] 1106. 090. 00616 100 च [00121 1062] /:0)001, 26110102 2 (50081960015 00065107072 01111009119. 4৯275. 30 ) । प्र० १०. भावना से य॒क्त नतिकता ही আল ই | হজ कथनकी व्याख्या करते हुए नंतिक जीवन के सम्बन्ध मे घसे के काय का. स्पष्टीकरण कोजिय । क्‍या घधमं के बिना नंतिक्कता का अच्तित्व सभव ই? इस प्रश्न অহ आलाचनात्मक विचार कीजिये। उत्तर :-मैथ्य आ्रावल्ड (8005৮ नृत्‌ ) के शरनुरार “भावना से युक्त नैतिकता ही धस है] यह मत घम और नतिकता में किसी कार का भेद नहीं करता । प्रिंगल पैटासन ( ए्पा< 78050 ) एज़॑ श्रेडले इत्यादि अनेको विद्वानों के अनुसार भी नेतिकता ओर धर्म म॑ अत्यन्त बनिष्ट सम्बन्ध है। ब्रौडले के अनुसार “नेतकता से परे जाना नेतिक कतंक्य है ओर वह कत॑व्य है धार्मिक होना |” परन्तु धार्मिक होना उसी प्रकार कोई कर्तव्य,/नहीं है जिस प्रकार भोजन करना; पानी पीना , सोना इत्यादि | धर्म मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति हैं चाहे वह जिस रूप में भी अभिव्यक्त हा'। उपरोक्त मन भें वह बात यथार्थ है कि. धर्म भावना पर आधारित है। परन्तु नेतिकता बुद्धिपर आधारित है। भावना प्रधान हो'जाने पर उसको नंतिकता नहीं कहना चाहिये। धर्म ओर नेतिकता को 'एक मानने वाले विचारक दोनों के अ्रन्तर को भूल जाते हैं। , :* है ~ इस विषय में दो मत नहीं हो सकते कि “बर्म” यदि- वह वास्तव में धर्म है तो उसका नेतिकता से वश्य सम्बन्ध : होना चाहिये । यहाँ पर. “धर्म? शब्द জা अ्रेग्नज्ञी के (रिल्लीजनः ( ९८॥एप्टॉांणा ) शब्द के अथ मे प्रयोग किया जां रहा है | संस्कृत में धर्म का अर्थ जगत के; नेतिर्क विधान से दै यथा- ছা है'कि “'्थर्मेण - धायते-प्रजां |? नीतिशास्त्र और धर्म के परस्पर सम्बन्ध के-विषय >में तीन मत हो सकते है यथा धमं नैतिकता 'के पहले है, ' नेतिकता धर्स के' पहले है और धर्म और नेत्तिकता अन्योन्याश्रित है | पु पं , ९ धर्म नेतिकता से पहले है :---इस मत के समर्थक हैं देकारत॑, (12280०- शंट57) लोक ( 1,0८६6 ) पैले (०४1८५) इत्यादि । नेतिकतां धर्म से उत्पन्न होती है । ईश्बर की आशा और निषेध दी शुभाशुभ का निरय कर्ताः है। देवी লিখল সী नेतिक मानदंड है'। ईश्वर अपनी इच्छा से नेतिकता की उत्पत्ति करता है। वह स्वयं किसी भी नैतिक नियम से वाध्य नहीं है। उसकी आजाओों को हम - पैगम्बरो ओर देवी पुस्तकों द्वारा जानते है। हेड पे यह मत- ईश्वर को अनेतिक बना देता है। यह सत्य है कि ईश्वर पर किसी -अकार का “चाहिये?” का नियम लागू नही हो सक्रता परन्तु फिर भी यदि नेतिकता




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