प्रेमकान्ता सन्तति भाग - ३ (हीरे का तिलस्म) | Prem Kanta Santati Part 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.67 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आशुकवि शम्भुप्रसाद उपाध्याय - Ashukavi Shambhuprasad Upadhyaya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हीरे का. लिख्स्म र् खुनने की कसम खा बैठा. है। उसको. उस बातके सुनाने में अपने को क्यों जोर दें 1 अच्छा श्रब मेरो बाठोका जवाब दो? आरत--- प्ररूनन होकर. सबसे पहले में किस बातका जवाब दूं? कक . कुमार-र्ल्स् हसकर तुम बड़ोही मसखरों मालूम पड़ती हो । खेर -जो तुम्हारे जी में आाचे उस का जवाब पहले को । इसको जवाब में देह आर कुछ कहाहा चाहता था इतने में एक बीस बाइस बरस को खूबसूरत आश्स ने घबड़ाई हुई सूर त में उस औरत के पास आकर कहा--आपको महाराजा साहब इसी वक्त याद कर रहे हू ? औरत - चौंक रूर एं महाराजा साहब महाराजा साहब शिकार से कब लोट आप ? चह-उन्दे छोटे पांच मिनट भी न इई होगी । उन्होंने अतेदही सबसे पहले आपदी को याद किया है ओरत-अफसोस भैरवी के वक्त श्याम कल्याण छेड़ा गया । ये भी कैसे बेढब समय में आगए ? खेर कोइ परवाह नहीं - कुमार की तरफ देखकर आप थे फिक्र होकर रहिएगा। मैं घरटे भरके भीतर ही चलो आउऊँगी । तब तक यह मेरी प्यारी लोॉंडी ज्योती आप की सेवा करती रहेगी | इतना कहकर वह तेजी के साथ उठ -बाहर चली गई । उसके जाने के वाद कुमार कुछ देर तक अपने खयाल में. डूबे रहे । उन्हें ज्योती के रहने की भी याद न रही । उनकी ऐसी हालत-देख ज्योती ने कहा--कुमार आप मेरी एक बातकों जरा ध्यान देकर सुनरे ? कुसार--कडो कया कहा चाहती हो ? ज्योली-मैं इस फाहिशा-की लोंडी ज्योती नहीं हूँ ।
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Vishal
at 2018-12-25 04:07:26"Please upload part 4"