प्रेमकान्ता सन्तति भाग - ३ (हीरे का तिलस्म) | Prem Kanta Santati Part 3

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Prem Kanta Santati Part 3 by Ashukavi Shambhuprasad Upadhyaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हीरे का. लिख्स्म र् खुनने की कसम खा बैठा. है। उसको. उस बातके सुनाने में अपने को क्यों जोर दें 1 अच्छा श्रब मेरो बाठोका जवाब दो? आरत--- प्ररूनन होकर. सबसे पहले में किस बातका जवाब दूं? कक . कुमार-र्ल्‍स्‍ हसकर तुम बड़ोही मसखरों मालूम पड़ती हो । खेर -जो तुम्हारे जी में आाचे उस का जवाब पहले को । इसको जवाब में देह आर कुछ कहाहा चाहता था इतने में एक बीस बाइस बरस को खूबसूरत आश्स ने घबड़ाई हुई सूर त में उस औरत के पास आकर कहा--आपको महाराजा साहब इसी वक्त याद कर रहे हू ? औरत - चौंक रूर एं महाराजा साहब महाराजा साहब शिकार से कब लोट आप ? चह-उन्दे छोटे पांच मिनट भी न इई होगी । उन्होंने अतेदही सबसे पहले आपदी को याद किया है ओरत-अफसोस भैरवी के वक्त श्याम कल्याण छेड़ा गया । ये भी कैसे बेढब समय में आगए ? खेर कोइ परवाह नहीं - कुमार की तरफ देखकर आप थे फिक्र होकर रहिएगा। मैं घरटे भरके भीतर ही चलो आउऊँगी । तब तक यह मेरी प्यारी लोॉंडी ज्योती आप की सेवा करती रहेगी | इतना कहकर वह तेजी के साथ उठ -बाहर चली गई । उसके जाने के वाद कुमार कुछ देर तक अपने खयाल में. डूबे रहे । उन्हें ज्योती के रहने की भी याद न रही । उनकी ऐसी हालत-देख ज्योती ने कहा--कुमार आप मेरी एक बातकों जरा ध्यान देकर सुनरे ? कुसार--कडो कया कहा चाहती हो ? ज्योली-मैं इस फाहिशा-की लोंडी ज्योती नहीं हूँ ।




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  • Vishal

    at 2018-12-25 04:07:26
    Rated : 10 out of 10 stars.
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