तिर रही वन की गंध | Tir Rahi Van Ki Gandh

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Tir Rahi Van Ki Gandh by मुकुन्द लाठ - Mukund Lath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तिग रही वन की गध कस गई गफ गध का गजरा उठा लो ठढ मे, आओ यहा कितनी, न जाने, लताओ की छन रही झीनी महक रस-बोझ गहराई गठी, कस गई गफ बाँधे हवा के बध




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