श्रमण भगवान महावीर | Shraman Bhagwan Mahavir

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Shraman Bhagwan Mahavir by जैनाचार्य श्री विजयेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज - Jaincharya Shri Vijayendra Surishwarji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ कृष्ण बलराम भी उत्को ह 1 द्तसियं उनके धनिष्ठ क्षनय को पुरातात्विक साक्षी भी नान्त है 1 अनाननो के अतृस।९ श्रीरन्म भगवान अरिप््पेमि के बडे ही भक्‍त थे। भैमिनाथ का भिर्वाण गिरुनार पवते ५९ इजा 1 नेमि सजल को ५।५। वहत ही प्रसिद्ध है। तेइसपे तीर्थं कर भगवात पाश्वेनाथ पुरुष।द।नीय को ते सभी ऐतिहासिक महापुरुष भानते ही है। भभवान महावीर के निर्वाण से पाश्वना।य का শি পণ २५० वर्ष पू्र ही हुआ था भगवाव पाश्व॑नाथ के साथु, सान्‍वी और श्वावक, श्रवाविका भगवान भहावीर के समय में विद्यमान थे सगवान महावीर के पिता और मास। भगवान पा£व॑नाथ के ही अनुयायी थे। दि दर्शनस1< भ्रन्‍्य के अनुसार ते महात्मा बुद्धने मी पाश्य परम्परा में ही पहले दीक्षा लीथी भगवान पाश्वत्ताथ का লিন सम्मेतासिर १९ हुआ था २४ तीथथेकरों में उप्तको अभिद्ध सबसे ज्यादा है। पाश्वना4 के भदिर एवं मुतिया। स्तोच स्तवर्च आदि भी स्नाविक प्राप्त है। भभवाव पाश्वेनाथ के कई साथ भगवान महावीर को प१९+५९ में समिलित हो पये है। भगवान पाश्वनाय ने (তুএাঁলদ घर्मक। अवर्तन किया था उनमे से चोथे याम अशहिल्नत मे सशोधन करकं ह्वय को अलय नत चलाते हु भगवान महावीरन परचमहानत्रत रूप सर्म का সাং फिया था उततराष्ययन सूत्र के कही गौतम सवाद में पारश्च और महावीर के चरम का अन्तर स्पण्ट किया गया है। भव से रशछर वर्ष पहले चौवीसवे तीर्यकरे भगवान महावीर का जन्भ हुआ जिनका भूल नाम वर्धघभान था। ३० वर्ष की आथु में उन्होने अ्रहुत्वाथ करके भुनि दीक्षा ग्रहण की साढ्वारह वर्षों तक सहातत कठिन साधना करके उन्होने केबल जान और केचल অপ आप्त किया। तदच्तर चंघुविव सप की स्थापना करके ३० तपो तन अनेक स्थानों में অম্ল এ करते हुए अबसे २५०० वर्षो पहले




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