ज्ञानसार | Gyansaar

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Gyansaar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` ` न्यायाचां न्याथविशारद ` ` ` ` ` श्रौमद्‌ यशोविजयजो भक भ +> जकः सा+ খরার + दिऽ ` ,/ ९7 भारतीय संस्कृति हमेशा घमेप्रधान संस्कृति रही है। . चूकि धर्म से ही जीवमात्न का कल्याण हो सकता है।.. बर्म से ही मनृष्य को शान्ति व प्रसन्नता प्राप्त हो संकती है। धर्म के माध्यम से ही मनुष्य को वास्तविक सुखी बनाया जा सकता है ।. जीवों की कक्षा के अनुसार धर्म का.पालन भिन्न भिन्‍न होता है । सव जीवों के लिए एक ही धर्माचरण नहीं होता- है । 5 অঁজাহ ঈ जीवों को .वर्ममार्ग बताने का कार्य पवित्र _ जीवन जीने-वाले साधुपुरुष. करते आये हैं श्रौर करते रहे हैं। साधुपुरुष स्वजीवन में उच्चतम धर्म का.पालन करते हैं. और. संसार की धर्म का मार्ग बताते हैं, यह है साधु पुरुषों की ' विश्वसेवा | . ` , धमे का उपदेश देना और धर्मग्रन्थों का निर्माएोँ करना- साधुजीवन की मुख्य प्रवृत्ति | इस अवृत्ति के अलावा . साधुपुरुष अपनी आत्मविशुद्धि .के 'लिए ज्ञान-व्यान* योग .. सांधना वगैरह मे निरतः रहते हैं। हिसां-भू :-चो री-दुराचा र< ` .परिग्रह.के पापोंसे वे स्वेथा निवृत्त होत हँ ।` विना पापः किए : भी मनुष्व जीवन जी सकता है; इस बात को. प्रत्यक्ष प्रमाणं हैं हमारे भारत के एकमात्र जेन मुनि। ` - : {|




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