साहित्य और नारी समस्या | Sahitya aur nari Samsyaye
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)টি ইশ
भूतियाँ मानव-मात्र तक प्रसरित हुई---विश्वजनीन बनीं |?
इस स्थापना में चौहान के पहले सूत्र की सौन्दर्यमूलक प्रदत्ति छूट गई है;
महत्ता का कारण वतलाते हुए विषयवस्तु पर ही जोर दिया गया है।
चौहन के वाक्यी से यह भी स्पष्ट है कि इन महान् लेखकों करा मानव-
बाद सभी मानवों के प्रति सहानुभूति प्रसरित नहीं करता । ऐसे समाज में जहाँ
बगे और उनका परस्पर विरोध मौजूद हों, वे शोपकों का दष्टिकोश न अपना-
कर जन-साधारण का दृष्टि कोण अपनाते थे । इस तरह साहित्य वर्गों से परे
नहुआ। वल्कि उनके सम्मस्थों और संघर्ष को अ्ति्िबित करने वाला हुआ ।
ओर महान् लेखक वही कहलाता है जो सामाजिक यथार्थ की ,मूल सम-
स्याश्नौ का उदुघायन करता है ओर जनता के उत्पीड़कों की आलोचना क़रता है,
उनके प्रति विद्रोह तक करता -है । इसलिये उसके मानवबाद का भो एक वर्गे-
भ्राधार होता है | वह “म्ानव-मात्र” तक अपनी घहातुभूतियोँ प्रषरित नहीं
करता । उसकी सहाततमूतियोँ विश्वजनीन एक सीमित श्रथ म ही होती हैं,---
जन-साधारण के लिये विश्वजनीन नन कि वर्ग मेद छोड़कर समान रूप से सभी
के लिये ।
महान् शब्द भी सापेक्षता मूलक है । जहाँ महान् लेखक होंगे, वहाँ अ्-
महान् लेखक भी होंगे | जहाँ कुछ लेखक वर्ग-समाज क़े प्रति विद्रोही होंगे, वहाँ
कुछ उसके हिमायती भी निकल आयेंगे । जहाँ कुछ लेखक मूल समस्याओं का
उद्घायन करेंगे, वहाँ कुछ ऐसे भी होंगे जो श्र-मूल को ही मूल कह कर पेश
करेंगे । इस तरह साहित्य में दो धाराओं का अस्तित्व स्वीकार करना ही
पड़ेगा, उन्हें चाहे महान और अमहान-कहिये चाद प्रगतिशील श्रौर अति-
क्रियावादी किये | इसलिये यह स्थापना कि कलाकार स्वभावतः प्रगतिशील
होता है, सही साबित नहीं होती ।
महान-लेखकों को वर्य-समाज का विद्रोही मानने-पर कलाकार या आलो-
नवक से तरस्थता की मोग करना च्याश्चर्यजनक है। चौहान ने “साहित्य की
परख े-तटस्य होने की कटिनाई् बयान करते हुए कहा है, “वर्तमान में
.हमारी दृष्टि बहुत संकुचित श्रौर सीमित रहती दै-वस्तुे, घटना, भावना,
गगद्रेष श्रपनी तरति निकस्ता के-कारण सारे हृष्टिपट पर छा जाते हैं और
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