साहित्य और नारी समस्या | Sahitya aur nari Samsyaye

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Sahitya aur nari  Samsyaye by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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টি ইশ भूतियाँ मानव-मात्र तक प्रसरित हुई---विश्वजनीन बनीं |? इस स्थापना में चौहान के पहले सूत्र की सौन्दर्यमूलक प्रदत्ति छूट गई है; महत्ता का कारण वतलाते हुए विषयवस्तु पर ही जोर दिया गया है। चौहन के वाक्यी से यह भी स्पष्ट है कि इन महान्‌ लेखकों करा मानव- बाद सभी मानवों के प्रति सहानुभूति प्रसरित नहीं करता । ऐसे समाज में जहाँ बगे और उनका परस्पर विरोध मौजूद हों, वे शोपकों का दष्टिकोश न अपना- कर जन-साधारण का दृष्टि कोण अपनाते थे । इस तरह साहित्य वर्गों से परे नहुआ। वल्कि उनके सम्मस्थों और संघर्ष को अ्ति्िबित करने वाला हुआ । ओर महान्‌ लेखक वही कहलाता है जो सामाजिक यथार्थ की ,मूल सम- स्याश्नौ का उदुघायन करता है ओर जनता के उत्पीड़कों की आलोचना क़रता है, उनके प्रति विद्रोह तक करता -है । इसलिये उसके मानवबाद का भो एक वर्गे- भ्राधार होता है | वह “म्ानव-मात्र” तक अपनी घहातुभूतियोँ प्रषरित नहीं करता । उसकी सहाततमूतियोँ विश्वजनीन एक सीमित श्रथ म ही होती हैं,--- जन-साधारण के लिये विश्वजनीन नन कि वर्ग मेद छोड़कर समान रूप से सभी के लिये । महान्‌ शब्द भी सापेक्षता मूलक है । जहाँ महान्‌ लेखक होंगे, वहाँ अ्- महान्‌ लेखक भी होंगे | जहाँ कुछ लेखक वर्ग-समाज क़े प्रति विद्रोही होंगे, वहाँ कुछ उसके हिमायती भी निकल आयेंगे । जहाँ कुछ लेखक मूल समस्याओं का उद्घायन करेंगे, वहाँ कुछ ऐसे भी होंगे जो श्र-मूल को ही मूल कह कर पेश करेंगे । इस तरह साहित्य में दो धाराओं का अस्तित्व स्वीकार करना ही पड़ेगा, उन्हें चाहे महान और अमहान-कहिये चाद प्रगतिशील श्रौर अति- क्रियावादी किये | इसलिये यह स्थापना कि कलाकार स्वभावतः प्रगतिशील होता है, सही साबित नहीं होती । महान-लेखकों को वर्य-समाज का विद्रोही मानने-पर कलाकार या आलो- नवक से तरस्थता की मोग करना च्याश्चर्यजनक है। चौहान ने “साहित्य की परख े-तटस्य होने की कटिनाई्‌ बयान करते हुए कहा है, “वर्तमान में .हमारी दृष्टि बहुत संकुचित श्रौर सीमित रहती दै-वस्तुे, घटना, भावना, गगद्रेष श्रपनी तरति निकस्ता के-कारण सारे हृष्टिपट पर छा जाते हैं और




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