हिन्दी साहित्य के चार काल | hindi sahitya ke char kaal

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hindi sahitya ke char kaal  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३) लगे थे | राजनीतिक, सामाजिक ओर धार्मिक क्षेत्रों में जिन अभाशों की पूर्ति के लिए ठोस विचार-प्रसार होना आवश्यक था, वह न हुआ | किन्तु सोभाग्य से हिन्दो-साहित्य की प्रगति उस पुण्य पथ की ओर उन्मुख हो रही थी, जिस पर विल्लास में पले हुए अनुत्तरदायी रसिक कवियों को क़दम बढ़ाना वर्जित था । जिन दिनों यह श्रृज्ञर-परम्परा अपने अवसान की ओर अग्रसर हो रही थी, मारत में श्रो का पणं आधिपत्य हो चुका था। अपनी सभ्यता का प्रचार करने के लिए इन नये शासकों ने अँग्रेज़ी शिक्षा का प्रचार आरम्भ कर दिया। विदेशियों के सम्पन्न साहित्य ने भारत के शिक्षित-समुदाय में एक नई जागृति-भावना का संचार किया। दासता की वेड़ियों में कसे हुए भारतीय अपनी दीनता की भावना का अनुभव करने लगे । साहित्य में क्रान्ति की एक ऐसी नई लहर उठी जो | देश-प्रेम का अविरल नाद करती हुई সাল ক্ষ জলা বানি জী हिलोरें ले रही है । आधुनिक युग में विदेशी शासकों के सम्पर्क से जिन दूरदर्शी लोक-चिन्तक व्यक्तियों की आँखें खुल गई, उन्होंने देश में सामाजिक, राजनीतिक योर धार्मिक. चे लद॒ल. और दगेन्धयुक्त वातावरण में संशोधन-काये काव्रत ले लिया। समाज की दुत्येवस्था के प्रति साहित्य की सदा सहालुभूति रही है, अतः नये कवियों ने विदेशी शासकां से सहयोग रखते हुए देश-परेम ओर भापापरेम की पुकार इस . कोने से उस कोने तक पर्चा । महपि दयानन्द सरस्वती, मारतेन्दु दरि्वन्द्र; राजा




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