कामायनी सौन्दर्य | Kamayani Saunadrya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मूर्त 'संप्रसरण” । पहला कवि अद्नेत तथा निप्कल है, जब कि दूसरा
हैत, वाक् (शक्ति ) से संयुक्त । व्यावरह्मरिक जगव् से दूसरे का
अस्तित्व भ्रव सत्य है, परन्तु पारमाधिक दृष्टि से पहला ही एक
লাল জন ই।
(२) रस क्या है ?
यह श्रात्मा श्रथवा कवि ही ^रस' है; यदी सव का आनन्द है;
यही सब का प्राण द, विना इसके भला कोन रह सकता दैः--
रसो वै सः । रस द्येवायं लब्ध्वा श्रानन्दी मवति । को छोवान्यात्कः
प्राण्यात् । यदैष श्राकाश श्चानन्दो न स्यात् 1 एप दय वानन्टयति ॥
€ तें० उ० २०७ )
इस 'रस” से जिस श्रानन्द् की प्रापि हौती है, उसका कुछ श्रजुमान
कराने के लिये तेत्तिरीय उपनिषद ने निम्नलिसित प्रयत्न किया है;--
बुद्धि तथा वित्त. 5 शक सानुप आनन्द ।
१०० सा० थ्रा०_ 5 एक मलुप्य गन्धर्वों का आनन्द ।
१०० म० गं° श्रा = एक पित्रो का श्रानन्द् ।
१०* पितरो का० = ¶ श्राजानजा उेवताश्रा का श्रानन्द् ।
१०० प्राग द° श्रा = १ कर्म देवों का आनन्द ।
१०० क दे शथ्रा० ८ देवो का आनन्द ।
থ৬৩ द्वे० खा १ हन्द्र का आनन्द ।
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१०० हृ० ध्या० 2 * बृहस्पत्ति का आनन्द ।
१८० घन श्रार = ¶ प्रजापति का श्रानन्द 1
३०० प्र० आा० = ¶ प्रद्म का आनन्द ।
हुल वर्णन से स्पष्ट ऐ कि ग्रह्मानन्द ही चास्ततिक 'रस' है। चहा
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तो आनन्दस्वरूप है; दसीलिये श्रथर्ववेद्र में उसे श्रकास, লুক,
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