कामायनी सौन्दर्य | Kamayani Saunadrya

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Kamayani Saunadrya by फतहसिंह - Fathasingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ এ मूर्त 'संप्रसरण” । पहला कवि अद्नेत तथा निप्कल है, जब कि दूसरा हैत, वाक्‌ (शक्ति ) से संयुक्त । व्यावरह्मरिक जगव्‌ से दूसरे का अस्तित्व भ्रव सत्य है, परन्तु पारमाधिक दृष्टि से पहला ही एक লাল জন ই। (२) रस क्‍या है ? यह श्रात्मा श्रथवा कवि ही ^रस' है; यदी सव का आनन्द है; यही सब का प्राण द, विना इसके भला कोन रह सकता दैः-- रसो वै सः । रस द्येवायं लब्ध्वा श्रानन्दी मवति । को छोवान्यात्कः प्राण्यात्‌ । यदैष श्राकाश श्चानन्दो न स्यात्‌ 1 एप दय वानन्टयति ॥ € तें० उ० २०७ ) इस 'रस” से जिस श्रानन्द्‌ की प्रापि हौती है, उसका कुछ श्रजुमान कराने के लिये तेत्तिरीय उपनिषद ने निम्नलिसित प्रयत्न किया है;-- बुद्धि तथा वित्त. 5 शक सानुप आनन्द । १०० सा० थ्रा०_ 5 एक मलुप्य गन्धर्वों का आनन्द । १०० म० गं° श्रा = एक पित्रो का श्रानन्द्‌ । १०* पितरो का० = ¶ श्राजानजा उेवताश्रा का श्रानन्द्‌ । १०० प्राग द° श्रा = १ कर्म देवों का आनन्द । १०० क दे शथ्रा० ८ देवो का आनन्द । থ৬৩ द्वे० खा १ हन्द्र का आनन्द । 1 १०० हृ० ध्या० 2 * बृहस्पत्ति का आनन्द । १८० घन श्रार = ¶ प्रजापति का श्रानन्द 1 ३०० प्र० आा० = ¶ प्रद्म का आनन्द । हुल वर्णन से स्पष्ट ऐ कि ग्रह्मानन्द ही चास्ततिक 'रस' है। चहा < শে तो आनन्दस्वरूप है; दसीलिये श्रथर्ववेद्र में उसे श्रकास, লুক,




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