मीरा बाई की शब्दावली | Meera Bai Ki Shabdavali

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Book Image : मीरा बाई की शब्दावली  - Meera Bai Ki Shabdavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिरह और प्रेम ॥ शब्द २॥ राम नाम र पीजे म्यो, राप नाम रस पीजे ॥ टेक॥ तज कुसंग सतसंग बैठ नित, हरि चरचा सुण लीजे ॥ १॥ काम क्रोध मद लोभ मोह कूँ, चित से बहाय दीजे॥ २॥ मीरा के प्रभु गिरघर नागर, ताहि के रंग में भी जे ॥ ३ ॥ बिरह ओर प्रेस का अंग ॥ शब्द १॥ पाई म्हॉरी हरि न बूकी बात । पिंड में से प्राए पापी, निकेस क्यू नहिं जात ॥ १॥ रेण अँपेरी बिरह घेरी, तारा गिणत निम्न जात । ले कादारी कंठ चीरूँ, करूंगी अ्रपधात ॥ २॥ पाट न खोल्या मुखाँ न बोल्या, साँक लग परभात । अबोलना में अवध बीती, काहे की कुसलात ॥ ३॥ सुपन में हरि दरस दीन्‍्हों, में न जाणयो हरि जात। नेन म्हॉगा उधड़ि! आया, रही मन पछतात ॥ 9॥ आवण आवश होय रहो रे, नहिं आवण की बात । मीरा व्याकुल बिरनी रे, बाल ज्योँ बिल्लात ॥ ५ ॥ [| হাল २ घड़ी एक नंहिं आवड़े' , तुप दरसण बिन मोय । तुम हो मेरे प्राण जी, का सूं जीवण होय ॥ टेक॥ धान” न भावे नींद न आवे, बिरह सतवे मोय। घायल सी घृपत फिरूँ रे, मेरा दरद न जाणे कोय ॥ १॥ दिवस तो खाय गमायो. रे, रेण गमाई सोय। प्राण गमायो भूरताँ रे, नेण বানাই रोय॥ २॥ जो में ऐसा जाएती रे, प्रीत किये दुख होय। नगर ढेंढोरा. फेरती रे, प्रीत करो मत कोय ॥ ३ ॥ (९) परदा 1 (२) चल गया ! {3 सरत) 5৯ শন 110 तथ तरस छ) 1




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