हिन्दी और मुसलमान | Hindi Or Musalman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
संस्छत प्रेम काव्यो की यह परम्परा अपश्रश कार तक चलती रही |
-अपभ्र श काल में-( जिसका समय सम्वत् १००० तक माना नाता है, )
अपश्र श में प्रेमकाव्य ভিউ जाने खगे जैन अन्थों में (मविसप्रत्त काः नामक
आख्यायिका पायी जाती है | सम्भवत ओर भी रचनाएँ इस काल में हुई होंगी,
क्रमबद्ध इतिहास न होने से उनका पता नहीं चलता | अपश्रश काल भाते-
आते भारत भूमि में मुसलमानों का पदापंण हो गया था। सूफी फक्नीरों का भी
आगमन हो चुका था । जिस प्रकार मारत में प्रेमाख्यानों की रचनाएँ. हो रही
थीं, उसी के समान फारस में 'मसनवी? शैली में रचनाएँ होती रहीं, जिनमे
सूफियों का रहस्यवाद मिला हुआ था | 'प्रम की पुकार” करने वाले स॒फी जब
भारत आए तब उन्होंने भारतीय जनता के बीच प्रचलित कथाओं को अपना
कर, अपना रंग चढा कर, चित्रित किया । इम प्रकार का जो रूप खड़ा किया
गया, वह भारतीय परम्परा में आने वाले प्र मकथा के स्वरूप से मिन्न था।
यही नया रूप सूफी प्रेमकाव्यों का जन्मदाता कहा जा सकता है।
भारत में प्रे मकाव्यों की यह नयी घारा वहाने में, यदि राजनीतिक कारण
उतना प्रव नदी या, तों यह यव्य मानना पड़ेगा कि इसके मीतर॒धार्मिक्ता
की दी प्रधानता थी, साथ ही कुछ सामाजिक्ता की मी | यह वात निश्चित और
प्रमाणित है कि मुसलमानों का मारत-प्रवेश सर्वप्रथम धामिक दृष्टि से ही हुमा
या | मले ही कालान्तर में उसके रूप में परिवर्तन हो गया और राजनीतिक बन
ভা | धर्म-प्रचारक का कार्य शासक वर्ग स्वत. चाहे न मी करे किन्तु इस प्रचार
में योग तों अवश्य ही देता है। कार्य का सम्पादन वस्तुत सुल्ल-सौलवी,
पादड़ी आदि ही करते है । राज्य-आश्षय में धर्म क्सि प्रकार पल््लवित हुए,
इतिहास साक्षी है। मुसलमान साधु-फकीरों ने जब देखा कि हिन्दू और
मुसलमान दोनों ही एक दूसरे के प्रतिद्वंदी हैँ तथा धर्म का विस्तार करना
रै, तव उर एकता स्यापन के नाम पर भारतीय कथानक और त्तत्कालीन हिन्दी
-को ' अपना कर प्रेमकान्यों की स्वना की । एेखी रचनाओं मँ सृफीवाद् वी खष्ट
कलक दिखायी पड़ती रै ! सफी मत॒ का स्वरूप मारतीय यद्रेतवाद पर दी
निर्मित होने के कारण ही भारत में आह्य हो सका। नयी विजेता जाति के
आगमन का विरोध किया जाना स्वामाविक ही था, किन्ठ पारस्परिक सम्मिलन
होना मी अनिवार्य होता है, बिना इसके समाज की गाड़ी आगे नहीं बढ़
उक्ती । एक्ता-द्यापन का कार्यं चाहित्य द्वारा जिस प्रकार से सफ्ल्तापुर्वंक क्य
जा सकता है, वह इस युग में छक्षित होता है | जहाँ एक ओर तलवार की धार
पर धमम का प्रचार हो रहा था, वहाँ दूसर। ओर एक शासक वर्ग ( मुसलमान )
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