उज्जवल वाणी | Ujaval Vani
श्रेणी : ऐतिहासिक कथा / Historical fiction
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्सगत्ति श्रौर सत्साहित्व का महत्व १५
विचार--मेनुष्य कितना भोला होता है कि वह अपने हृदय मे
बसे हुए भयकर लुटेरो से तो नही डरता है लेकिन बाहिरी
लुटेरो से भय. खाता है। वे बिना कुछ कहे-सुने आगे चल
दिये । श्रगुलीमाल ने जब दूर से ही भगवान् बुद्ध को आश्राते
हुए देखा तो उसने सोचा-इस जगल मे कोई भी अकेले आने
की हिम्मत नहीं करता है फिर यह साथु कंसे अकेला आ रहा
है ? क्या इसे अपनी जान प्यारी नहीं है। वह बुद्ध के सामने
आया और स्थिर खडा होकर बोला---“ठहर जाझो, आगे मत्त
बढो, यहाँ ही खडे रहो ।' बुद्ध ने चलते-चलते कहा--भाई, मै
तो खडा हूँ, लेकिन तुम खडे रहो ।' ग्र गलीमाल ने सोचा-यहं
कसा साधु है जो सुझे स्थिर खडे होने पर भी खडे रहने को
कहता है और स्वय चलते हुए भी कहता है कि मै तो खडा हूँ ?
बुद्ध का उत्तर सुन वह एक उलभन मे फँस गया । उसने बुद्ध से
कहा--ऐसा तुम कंसे कह रहे हो ” देखते नही, मे तो खडा ही
हैँ ॥ तव भगवान् बुद्ध ने उपदेश देते हुए कहा--भाई मे तो
प्रेम और मैत्री मे स्थिर हैँ, लेकिन तू अभी अस्थिर है, अतः
स्थिर हो जा । भगवान् बुद्ध के उपदेश का नतीजा यह होता
है कि अन्त मे वह भगवान् बुद्ध का शिष्य हो जाता है और
उनके वस्त्र-पात्र उठा कर उनके साथ श्रावस्ती के बगीचे मे
श्रा जाता दै)
नगरी का राजा प्रसेनजित अ्रपनी सेना लेकर बाहिर
निकला और जंगल मे जाने से पूवं भगवान् बुद्ध के पास
आता है और वन्दना करता है । भगवान् बुद्ध ने जव उसके
पास सेना भी देखी तो कहा--राजन् ! आज सेना लेकर कहाँ
चढाई करने जा रहे हो ? राजा ने उत्तर दिया-महाराज,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...