श्री दिलसुख माधुरी संग्रह | Shri Dilsukh Madhuri Sangrah

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Shri Dilsukh Madhuri Sangrah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ दिलेसुस-माधुस संग्रह ४ ६ दिलेसुख-माधुस संग्रह ९ दशपेकालिक सूत्रम्‌ धम्मो मंगलमुक्किद, अहिसा 'संजमो तवों । देवा” वि तं नमंति, जस्स धम्पे सया मणो:॥ १॥ जहा दुमस्स पृष्फेस भमरो आवियह रसं । ण य पुष्फें किलामेई, सो य पी णेई अप्पयं ॥२॥ एमेए समणा ঘৃন্য) जे लोए संति साइयो 1 विहंगमा व पुप्फेसु दाशभत्तेसण रया ॥ ३ ॥ षयं च वित्ति ` लब्भामो, ण य कोइ-उवहम्मह अहागडेसु रीयंते, पृष्फेसु भमरा जहा ॥४॥ महुगारसमा उद्धा, जे भवंरि अशिंस्मिथ। नाणापिडरथाः दंत, तेण वुच्चति साहुभो ! सि वेमि ॥५। इति दुमपुष्फियनामं पठमञ्फयणं समत्तं ।१॥ कट स कुज्जा घामण्णंः जोकापे न निगार । एर पएः विसीयंतों; संकप्पस्स वस সী 1111 वत्थगं घमलंकारं, इत्थीओ सय- णाणिय। अच्छा जे न- भुज॑ति, न से चाह त्ति वुजचई ।२। जे य कंते पिए भोए;, लद्धं विपि कुब्चइ , साहीणे चयह- भोए: से हु. चाइ त्तिःठ्च्चई 1३॥ समाह राई परिव्वगरत सिया मणो.निस्परई बहिद्धा । न सा महं नोवि अह पि तीपे इचचेव्व त!ओ विएएज्द रागं। ४ | आयावयाही . चय মীম मल्लं, कामे कमाहि कमिय॑ खु दक्ख॑ | छिंदा हि दोसे विण- एज रागं, एवं सुद्दी होहिति संपराए ॥५॥ पवखं दे जल्चिये जोई धमक दुरासयं । नेच्छति वंतयः भोतु: कुले नाया भगंषशे ॥६।! घिरत्यू ते जसोक्रामी, जो त॑ जोवियकारंणां (




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