श्री दिलसुख माधुरी संग्रह | Shri Dilsukh Madhuri Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
436
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_ दिलेसुस-माधुस संग्रह ४ ६ दिलेसुख-माधुस संग्रह ९
दशपेकालिक सूत्रम्
धम्मो मंगलमुक्किद, अहिसा 'संजमो तवों । देवा” वि
तं नमंति, जस्स धम्पे सया मणो:॥ १॥ जहा दुमस्स पृष्फेस
भमरो आवियह रसं । ण य पुष्फें किलामेई, सो य पी णेई
अप्पयं ॥२॥ एमेए समणा ঘৃন্য) जे लोए संति साइयो 1
विहंगमा व पुप्फेसु दाशभत्तेसण रया ॥ ३ ॥ षयं च वित्ति `
लब्भामो, ण य कोइ-उवहम्मह अहागडेसु रीयंते, पृष्फेसु
भमरा जहा ॥४॥ महुगारसमा उद्धा, जे भवंरि अशिंस्मिथ।
नाणापिडरथाः दंत, तेण वुच्चति साहुभो ! सि वेमि ॥५।
इति दुमपुष्फियनामं पठमञ्फयणं समत्तं ।१॥ कट स कुज्जा
घामण्णंः जोकापे न निगार । एर पएः विसीयंतों;
संकप्पस्स वस সী 1111 वत्थगं घमलंकारं, इत्थीओ सय-
णाणिय। अच्छा जे न- भुज॑ति, न से चाह त्ति वुजचई ।२।
जे य कंते पिए भोए;, लद्धं विपि कुब्चइ , साहीणे चयह-
भोए: से हु. चाइ त्तिःठ्च्चई 1३॥ समाह राई परिव्वगरत
सिया मणो.निस्परई बहिद्धा । न सा महं नोवि अह पि तीपे
इचचेव्व त!ओ विएएज्द रागं। ४ | आयावयाही . चय মীম
मल्लं, कामे कमाहि कमिय॑ खु दक्ख॑ | छिंदा हि दोसे विण-
एज रागं, एवं सुद्दी होहिति संपराए ॥५॥ पवखं दे जल्चिये
जोई धमक दुरासयं । नेच्छति वंतयः भोतु: कुले नाया
भगंषशे ॥६।! घिरत्यू ते जसोक्रामी, जो त॑ जोवियकारंणां (
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