संयुक्त सूर्योदय जैन तिमिर नासक | Samyukta Suryodaya Jain Timir Nasak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
चिन्त्य; असंख्य; आयं अर्थात् सव से प्रथः
म जहांतक बुद्धि पहुंचावें तुम्हें पहिले -ढी '
पावें अर्थात् अनादि; ब्रह्मा ईश्वर अथातः
क्वान आदि ऐश्वर्यय का धारक, सब से श्रेष्ठ
अर्थात् सब से जच्च पदवाला; अनन्तम् जि-
'सका अन्त नहीं; अनंगकेतु-कामदेव-विका-
रबुछ्धिके प्रकाश रुपी सूर्य्य को ढकने घाला
केतु सुप जीस्का ज्ञान है; योगीश्वरम्; विदित
हुआ हे योग स्वरुप जीनकु; अनेकमेकम -
थात् परमेश्वर एक जी है, और अनेक
जी हे; जाववं एक, उठ्यल अनेक; अर्थात्
श्वर पदमे देत जाव नहीं, ईश्वर पद् एक दी
रूप दे. एत्यादि नामो से तथा ज्ञान, स्वरूप
र निर्मल रूप कीततेन करते ই.
प्रारियाः-यद् तो मानतुङ्नी ने ऋ
षन देव अवतार वी स्तुति की दै, सि€ ख-
আনু ছুস্বহ क तो नदीं!
जेनीः-ऋषनदेवजी क्या अनादि अ-
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