सर्व मंगल सर्वदा | Sarva Mangal Sarvada  

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Sarva Mangal Sarvada   by शान्तिचंद्र मेहता - Shaantichandra Mehta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) कि आपके संघ की णासन-निष्ठा एव धर्मं भावना प्रशस्त है । होरी के पहले चातुर्मास के विषय से कु कहने का प्रसग नही होता दै । नोरिवली चातुर्मास के बाद बाफणाजी ने जिन शब्दो मे उनका परिचय दिया-गेरेदिछ, वे बार्केश्वर मे भी भ्राएु । प्रतिक्रमण के समय आये और बाद से भी आए तथा श्रपनी भावना की स्मृति दिलाई कि जलगाव को आपको श्राता हो हैं । जलगांव तररूता फा আলক্ক-_ होली चातुर्मास के पहले जलूगांव का सघ घाटकोपर मे. श्राया साथ में पूना के संघपतिजी का पत्र भी लाया । आपके सघ को वहा सफलता मिल गई श्रौर सन्त यहा पहुच गये । मैं सोचता हू कि जलगाव का नाम जल का गाव होने से पडा होगा । जल शब्द तरलता का द्योतक होता हैं और तरख्ता जब मानव के मन मे उत्पन्न हो जाती है तो वह मानव अपनी मानवता को ही नही पहिचान जाता है, बल्कि स्वागत करने मे सक्षम हो जाता है तथा मगल की उपासना भी सफलता पूर्वक कर सकता है। यहा के निवासियों में ऐसी तरलता पदा हो जाय और इस नगर मे ऐसी स्थिति आ जाय कि शीतलत्ता के प्रसार से सबकी तपत्त मिट जाय- प्यास बुभ जाय तो वह मगरूमय होगा । यह्‌ जल्गाव जल-सरिता के समान सवं सुखकर प्रौर सवं मगल बन जाय जिससे जन-जन के मन को समभने की वैज्ञानिक पद्धति का विकास हो सके और उनके मन को शाइ्वत सुख व शान्ति को दिशा मे मोडने के प्रयास मे सफलता मिल सके | क्यो नही यह जक्गाव सारे देश को ही नही, सारे विश्वको शान्ति प्रदान करने का श्रग्रगण्य स्थान बन जाय ? हमारा श्रनुभाव और प्रयत्न रहे कि सभी को आत्म-ज्योति के दर्शन हो त्था सबके हृदय प्रकाश से आलोकित । यह सब हो सकेगा लेकिन तभी जब श्राप इस बाह्य मगर गृह्‌ की मुल मगलमय भावना को अपने प्रन्तकरण मे उद्घाटित कर्ते । महासतीजी श्री ज्ञानकवरजी, टताकवरजी और कई सन्त सतियो कौ तपस्या चल र्हीहैतौो इस दृष्टि से भ्रापका कत्तव्य है




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