स्वतंत्रता भारत में शिक्षा | Sawtantrata Bharat Me Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भरत में शिसा की स्थिति विहृगावलोकन षष्
भौर सहायता राशियाँ शिक्षा सस्याप्रों को दो जाती हू। इसलिए इन दो
सस्थाप्रों वा वही भ्रधिषर सोघा और सुनिश्चित प्रभाव है प्रौर य भारत की
शिक्षा के सम्पूर्ण ढाच में सुदृढ़ बनान घाले भभिन्ट शासा कामक्प्तोह्।
निभा-स्म्ब पी प्रमापा प्रौर नीतियो मे एकरूपता दनाए रषन कै लिए
काम कर रहे इन उपकरणों को भारत सरकार द्वारा आमोजन भ्रायोग
(प्लनिंय परमीशन) को स्थापना से प्लौर मी भ्धिक प्रवत प्रोत्साहन सिला ।
प्रायोजन प्रायोभ फी नियुक्ति यह मानकर परी गई थी कि यदि जनता के
जीवन-स्तर को ऊँचा उराना भोर संविधान के प्ररक सिद्धान्तो को जियान्वित
करना प्रमीष्ट है त्तो बैद्वीय भौर राज्य-मरकारो के प्रयत्त का ठीव-ठीक
समन्वय क्या जाता भावश्यव है । षयारि झायोग का षाय यह था कि वह
देश के भोतिक मानवीय झोर पूजी-मम्वधी साधना का प्राकलन (एस्टीमट)
कः प्रर एमी याजना बनाए जिसस उनका सबस आधधिक प्रभावणालो भोर
सन्तुलित उपयोग हां सके इसलिए भ्रायोग का राष्टोय गतिविधि कें प्रत्यक्
क्षेत्र में मारे तौर पर एक निन्चित नीति निर्धारित कर देती पढी | दच्न की
भ्रावःयक्वाए् भषिक था भोर तुलना में साधन कम थे इसलिए মনত সাবশনঙ্গ
था कि एक भार तो प्रग्नरताप्ता ( प्रायोरिटी ) का समुचित निर्धारण कर दिया
जाए जिस्रस उपलध साधना का समरस प्रधिक प्रमावपूण उपयोग किया जा
सब प्रौर सबस प्धिव सीद्र क््राव*यक्ताप्नो का सबसे पहल परूण किया जा
सवे प्रौरद्रूमरी प्रार मव स्तरा पर कायत्रमा का उचित समषय निया जाए
जिसस दुदुराव भोर भपव्मय से बचा जा सके ।
शिक्षा के क्षत्र में भायाग ने प्रजातजात्मब' राज्य फी प्ाव“यवताप्मां को
पूरा करन व तिए एक सर्वोगोण गायत्रम सयार क्या | यहे स्पप्टतया मानं
लिया गया दि रिक्षा मी विभिन्न स्थितियां एक-दूसरे से थनिष्ठ रुप से सम्दद
हैं और इसालिए जिसी एक क्षत्र में सब तक उन्नति नहीं हो सकती जब तक
उमे मम्बद पन्य सग दवोमे भी उन्नति नदो जाए ३ यह भी स्वोवपर गर
दिया गया कि ইশ बे विभिन्न मागो की भ्रावन्यक्ताएँ और उनने साधन प्रत़ग
झ्रलग है भौर उन भागो के सामाय सपा द्ोक्षणिक विषास में भी प्रतर है ।
इमसिए प्रग्नताधों झोर लप्या वा निर्धारण करन में नरमी से काम लिया
जाना घाहिए। फिर भी यहि राष्ट्रीय प्रयत्त गए प्रमावपूर
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