युग दर्शन और योगविसिंका | Youg Darshan or Yougvisinka

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Youg Darshan or Yougvisinka by सुखलाल - Sukhalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३१) बृत्ति और सटीक योगर्विशिका छपवानेके बाद, भी उनका हिंदी सार पुस्तकके अन्तमे द्विया गया हे 1 सार कहनेका अभिप्राय चह है कि बह मरख्का न तो अश्नरशः अनुवाद ह आगन अविकल भावानुवाद ही है। अधिकल भावानुवाद नहीं है इस कथनसे यह न समझना कि हिंदी सारमें मूल मंथका असली भाव छोड दिया है. जहोंतक होसका सार लिखलेमे मूल ग्रन्थके असली भावकी ओर ही खयाल रक्खा दै! अपनी ओरसे कोई नई तरात्त नदी लिखी है पर मूल यन्धर्मेनो जो व्रात जिस जिम ऋमसे जितने जितने सेक्षेप या विस्तारके साथ जिस जिस উম कही गई है बह सब हिद्दी सारभे ज्यों की त्यों छानेकी हमने चेष्ठा नही की है। दोनों सार लिखनेका देंग भिन्न भिन्न दे इसका कारण मूल ग्रंथोका विषयभेद और रचना भेद है पहले ही कहा गया है कि वृत्ति सब्र योग सूत्नोंके ऊपर नहीं है। टसका विषय आचार न होकर तत्त्वज्ञान है । उसकी भाषा साधारण सेस्कृत न होकर विशिष्ट संस्कृत अथोत्त दाशेनिक परिभाषासे मिश्रित संस्कृत और वहभी नवीन न्याय परिभा- पाके पयोगक्ते छदी ह } अतयत्र उसका अक्षरशः अनुवाद यः अविक भावानुवाद करनेकी अपेक्षा हमको अपनी स्वीकृत पद्धति ही अधिक लाभदायक जान पडी है। बृत्तिका सार लिख- नेमे यद पद्धति रखी गह है कि स्च या भाष्यके जिस निस मन्तव्यक्त साथ परणेरूपसे या अपणैरूपसे जन टिके अनुसार वृत्तिकार मिल जाते हैँ या चिरुद्ध होते हँ उख उस मन्तव्यक उस उस स्थानमें प्रयक्षरण पूर्वक संक्षेपम लिखकर नीचे बृत्ति- कारका संबाद या विरोध क्रमझ:ः संक्षेपर्म सचित कर दिया है . सव. जगह प्रचेपक्ष और उत्तर पश्चकी सव दरी सारम नहः दीद । चिप सार छलिखनेमै यही ध्यान रक्खा गया है कि वृत्तिकार कीस व्रात पर क्या कहना चाहते & ¦




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