द्वितीय पंचवर्षीय योजना | Dwitiya Panchavarshiya Yojana
श्रेणी : भारत / India, राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
618
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अव्याप १
ग्र्थ-व्यवस्था का विकास : अब तक की सफलताएं और
भविष्य का स्वरूप
प्रयम पंचवर्थोय योजनां
स्वतन्त्र होने के पदचचात भारत में सरकारी नीति झौर राष्ट्रीय प्रयत्तों का मूल उद्देश्य
देश का आर्थिक विकास द्वुत गति से और सन्तुलित रूप से करने का रहा है । प्रथम पंचवर्षीय
योजना इसी लक्ष्य कौ पूति की दिला में एक पर था । यह योजना तैयार करने को लिए योजना
श्रायोग ने उस समय की परिस्थितियों में विद्यमान देश के साधनों और ग्रावश्यकताग्रों का
विस्तारपूर्वक भ्रव्ययन करने का यत्न किया था । योजना में विकास या जो वा्यक्रम बनाया
गया था वह यह सोचकर बनाया गया था कि उससे देय कौ ब्र्य-व्यवस्या का प्राघार दृढ़ होकर,
हमारी समाज-व्यवस्था में ऐसे परिवर्तन हो जाएंगे कि वे भविष्य में श्रधिक शी घ्रता से उम्नति
करने में सहायक होंगे । इसमें ऐसी भी कुछ तात्कालिक समस्याप्रों को हल करने का प्रयत्त किया
गया था जो कि विदव युद्ध श्रीर देश-विभाजन के कारण सड़ी हो गई थी । इन दोनों दिशाओं में
प्रथम योजना से उल्लेखनीय प्रगति हुई है । इसके कारण जनता का सहयोग झौर उत्साह बड़ा
है और लोगों की विचार-प्रणाली श्रौर प्रवृत्तियां नई दिशा में मुठ गई है ।
२. प्रथम योजना ने जो प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी थी, द्वितीय पंचवर्षीय योजना को उसे
ही आगे बढ़ाना है। इसे उत्पादन, पूंजी-विनियोग झौर जीविकोपार्जन, तीनों में प्रधिक प्रगति
करनी होगी । साय ही, इते समाज में उन परिवर्तनों की गति को तीब्रतर करना होगा जिसकी
सामाजिक और झाथिक उद्देश्यों की पूर्ति की दृष्टि से देश की प्रय॑-व्यवस्था को प्रधिक মলি
मान और प्रगतिशील बनाने के लिए आवश्यकता है । विकास एक एसी प्रद्धिया है जो कि
निरन्तर चलती रहती है। इसका प्रभाव समाज के सभी पहलुओं पर पट़ता है । इसलिए इसे प्रति
व्यापक दुष्ट से देखना चाहिए । यही कारण है किं प्रापिवः प्रायोजन वग सम्बन्ध, शिक्षा समाझ
गौर संस्कृति आदि आविकेतर क्षेत्रों के साथ भी होता है । प्रत्येक योजना कुछ समय तक उस
भावी प्रयत्न का प्रारम्म माच रहती है जो कि भविष्य में निरन्तर भौर प्रधिद समय तक विदा
जाना होता है और उसके प्रत्येक पग पर् नण मागं सून जाते द तया हन कन्न के निष् नई समस्याएं
उपस्थित हो जाती हैं। इस कारण जब कोई योजना किसी विशेष रूमय के लिए बनाई छाए
प्रयवा कार्यक्रम तैयार किया जाए तब अधिक दीप॑काल की सम्मादनायों को घ्यान में रा
लेना चाहिए और ज्यों-ज्यों उन सम्भावनाम्रों का रूप स्पष्ठ होता जाए. स्योनयों घने कार्दपम
को आवश्यकतानुस्तार बदलने के लिए तैमार रहना चाहिए 1
~ ८५
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