विश्वयात्रा के संस्मरण | Vishva Yatra Ke Sansmaran

Vishva Yatra Ke Sansmaran by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वफ रंगून के लिए करते हुए छोग नहों थकते थे. राजस्थान से हमारे ही पूर्वन रग्न जाया करते थे जिन्ह कुल मिला कर तौनचार महीने ल्ग जाते थे. ज्यादा ` नहीं, सिर्फ-१०० वर्ष पहले की ही तो बात है. | मन वहलाने की कोशिश करने ल्या. भारत ओर वर्मा के पारस्परिकं संबध की मधुर स्मृत्यां के पन्ने आंखों के सामने से गुजरने लगे. कंसी . ` विडंबना हं ! सनुष्य राजनीति को जन्म देता है, फिर उसी की पैनी धार में अपनी गरदन नपवा लेता ह. ३० वर्षो मेँ इसी राजनीति के कुटिल हास्य ने भारत को खंडित कर के वर्मा, पाकिस्तान ओर श्रीलंका बना दिया. कल तकं ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जो भारतीय कदस मिला कर संघर्ष करते थे आज बे वर्मौ, पाकिस्तानी और सिहली कहलाते हैं. भारत से उन का असहयोग है और भार- . तीयों से मनमुटाव! बेठेबेठे सन बोझिल हो रहा था. बर्मावासी बहुत से भारतीयों की चिट्ठियां हमें मिल्ली थीं. वे संकट में थे. बर्मा सरकार उन के प्रति उचित. न्याय नहीं कर रही थी, यह उन की शिकायत थी. इसी लिए हम ने अपनी थात्रा की पहली मंजिल के रूप में रंगून को चुना था. सूचना मिली, वायुयान छूठने वाला है. सन कां भार कम हुआ. तेजी से कदस बढ़ाता हुआ अपनी सीर पर बैठ गया. चंद मिनटों में ही दमदम हवाई अड्डा पीछे छूठ गया था. रंगून पहुंच कर देखा, हवाई अड्डे पर बड़ी संख्या में भारतीय हमारे लिए प्रतीक्षा में खड़े हैं. इन सें राजस्थानी स्त्रीपुरुष अधिक थे. रामकुमारजी ने धीरे से कहा, ये लोग कितनी आशा और भरोसा लिए आए हैं. हम यदि इन के लिए कुछ भी कर पाए तो बहुत बड़ी सेवा होगी. में ने कहा, नई दिल्‍ली में इन के लिए हम ने जो थोड़ा सा प्रयत्त किया उस के लिए इतना स्नेह और विश्वास इन का हम पाएंगे, इस की आशा मुझे नहीं थी. कुछ दिनों पहले हम ने वर्मा के प्रवासियों के प्रतिनिधियों की स्वर्गीय प्रधान मंत्री श्री शास्त्री और विदेश मंत्री से मुलाकात करा दी थौ. इनकौ कठिनाइयों का समाधान कुछ अंशो तक हौ सका था. रंगून एयर पोर्ट काफी अच्छा और बड़ा है पर दसदम को तरह नहीं उतना व्यस्त भी नहीं. यहां हम ने लक्ष्य किया कि लोग प्रेम से जरूर मिले लेकिन सब के चेहरे पर भय और उदासी की छाया थी. वे वात करते भी डरते थे, इधर- उधर देख लेते थे कि कहीं कोई गुप्तचर तो नहीं है. वर्मा में पिछले दो वर्षों से जनरल नेविन का शासन है, जो कम्युनिज्म के बहुत ही निकट हः वेक ओर बीमा व्यवसाय के साथसाथ उद्योगधंघे और दुकानें भी सरकार ने ले ली हैं बर्मा सें सदेव से विदेशी श्रम और पूंजी उद्योग धंधे और शिल्प में নাহ जाती रही है. आधुनिक वर्मा को तो भारतीय श्रम ओर पूंजी का ही अवन कहना चाहिए । . आम तौर पर वर्मी मस्तमौजी जीव हैं. जिदगी के उत्तारचढ़ाव को वहाँ की औरतें संभालती हें, मर्द तो मुंह में चुरट दबाए दीवारों के सहारे अंघते हूं. प्रकृति ने देश का श्रृंगार कर दिया है. घरती अन्नपूर्णा और रत्नगर्भा है. विश्व द




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now