आधुनिक राज्य तथा स्वतंत्रता | aadhunik raajy tatha svatantrata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वतशठा संबंधी कुछ स्पूल विचार ६ कोई डाबटर, तथा कोई व्यद्धित कारोगर बतना चाहता है । यदि समाज इन सब व्यक्तियों को झपनी इच्ठानुसतार ঘন को बनाने का झवसर प्रदान करे, तो इसे विधमता का नामनी दिया जा सक्ता) इनो प्रकार कतित स्वरूप ॐ क्वन्‌ एदं निषेवणं ते यदि जीवन के किस्ही क्षेत्रों को किन्ही निश्चित व्यक्तियो म्रयवा समूहों के लिए स्लीमित कर दिया जाएं तो निश्चित ही यह बात समता की कल्यना के विरद होगी। समता का धर्यं है स्वर कौ समानता । अत. प्रत्येक व्यवित को सपने भीतर, की रावित एवं कौशल को विक्रसित करने का झदसर समान रूप से मिले तो यह समता होगी + मौलिक अधिशार हर व्यक्ति को सणान रुप से मिलने चाहिए ६ किसी भी व्यक्तिको उसके घम श्रयवा उसकी जाति के कारण इन प्रधिकारों से वचित रखना विपमत्ा होगो । मौततिकश्रषिकारों झेयदिविसीप्रकारकी ऊंच-मीच बनाए रखनो पड़े तो यह देख लेना चाहिए कि बह किसी उचित उद्देश्य के लिए है तथा उससे सार्वजनिक दिन होवा है। साथ ही यह भी देखता होगा कि वह ऊँद-नीय लोगों को स्वीकृत है या नहां। जो बाते समाज के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के एवं आध्यात्मिक दिकस के लिए भावश्यक हों वे सद की सद प्रत्येक व्यतित को आप्स होनी चाहिए । उनके प्राप्त होने के बाद यदि डिन्‍दही শীত बातीं में किसो प्रकार का कोई भेद हो जाए तो उसका उतना विरोध नहीं होगा) किसी भी व्यक्ति को मालपुत्रा और खीर खाने का अ्रधिकार तब तक नही होना चाहिए, जब तक समाज के हर व्यक्ति को रोजमर्स का दोनों समय का खाना नत्तीव न हो । कितो भी व्यक्ति को बहुत ऊंचे दर्ज की पढ़ाई-लिखाई का अधिरार तद तक नहीं मिलना चाहिए, जब तक प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम आवश्यक शिक्षा नहीं मिलती | इस हृष्टि से यदि हम विदार करें तो समता का प्र सपप्ट हो जाता है । सभठा का अर्थ हुआ कि व्यक्ति सात को समाज में रहते हुए प्रात्मोक्षत्ति के लिए समान प्रवमर का प्राप्त होना । तथा यदि किसी को यह अश्रवध् ए कम पिलता हो भयवा क्रिसो को कम झवसर देना हो, तो यह देख लेना चाहिए किः वेसा करना समाज के हित में है या नहीं । यह दाद स्वयंश्िद्ध होनी चाहिए । शहरियो को शिक्षा की जहरत है, यह देखकर गाँव “बालो की शिक्षा में कप्तो करना अथवा विद्वविद्यालयीन मिक्षण की आवश्यकता सधिक है, यहे देखकर प्राथमिक शिक्षा पर होने वाले सर्च मे कटौती करना समता के मिद्धान्त के अनुकूल नही বুতর্য किसे कार्ग्रविशेष के लिए किसी व्यक्तिविशेष को, उप्तको योग्यता को देखते हुए, प्रधिक भ्रनुदल समकते से समता को हानि नही होती । हों, उस उपेक्षित बा छुनाव उसके गुणों को देखकर किया जाना चाहिये | सम्पत्ति को ग्रुखो पर रीकरर व्यक्त के पाप झाना चाहिए,” के वल व्यक्ति के बंध घधथवा जन्म पर কী नही 1 गुछी के भवुयार व्यक्ति को इनाम दिया जाये तो इससे समता के प्रथं कौ हानिन होकर उच्त पर प्रकाश पड़ता है। किसी भी व्यक्ति को विसी दूसरे व्यवित के वेयक्तिक स्वार्थ हो पूर्ति के लिए राज्य द्वारा वंचित नही रखा जाएगा, उसकी उपेक्षा नहीं की जाएंगे, यहि यद्‌ श्रवस्या टुः सौ ईषते रुमठा में दृष्धि होती है। यदि कोई ऐसी दिक्कत हो जो हुर व्यक्षित के सामने समान रूप से पाई हुई हो तो व्यवित को उसके विरुद्ध कोई शिकायत नही রে 1 समान अवसर देंने के वाद यदि किसी को बम भोर किसी को प्रधिक लाम होता हो तो उसका दोप समाज के मस्ये नेदीय जा सकेगा दया হত




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