मेवै रा रूंख | Mevaira Rookh
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
986 KB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)>घोछी घोती पैरा एक लुगाई साथ बींरँ एक छोरो, पदर सोछ बरससू ऊ चौ
नही हसौ चाईजे, लुगाई र॑ हाथ में एक गांठडी, छोरें कन एक पेटो वीर क्षर
प्रघरसै निक्छ्या। लुगार्ईगेमू ढक््योडो हो । वण जार वारण न धक्को
दियो होल सी ।
“कुण हुई (हुमी), बी वारख भ्राप्र” बोन सुणीज्यों । ध्यान घायो ঘীন,
भरे मूछ बारणो तो बॉन है সানী আাঘা হী ভুজিঘা ভামাহ है, दो যা আনিকা
झौर झागीने गयो । बरस सित्तरेक रै एक साध बारणों खोल्यो | न बीन घणों
सूर्क भाकत मर न भवार बो दो बरसाँ सू घणों बार दुर फिर ही, प्रधमाणस सो
झापरो खोटवो काढ इसो লাহমীতী | ভীল্ত स पूछथा सिनाथ 'मैंतणी ग्ह्वाराज रे
क्प है, दरसण करतो 1”
“बेचेत पडिया है रामजी र, भ्राँछ ही नही घोल घडी झाध घडी मू
क़दे६ बोल, दरहण फरन न भराहौ वेढा मठी य॑न,घरे जावो न नीद मेढा हृवोनी ।'
वारणो बद हुग्यो ।
सिना, धरौ उद्छमाड मे पटनो ठीक को समश्योनो सामीपगा दी
दुरग्यो पाष्टो 1
पाविश दो एक शभागीन जा'र, काई णजची दौर वो पाछो ही मुड्ग्यो
भर पार बारण ঘল हो स उभग्यो । घोष ने हुय बण सुष्यो, (सता कुण हो?!
“काँई ठा हेठां, भो तो नी पुछियों 1!”
'पूछणों चाईजै हो खर, एक्लपो ही हो काई ?”
हुणी! तो एफ्छपो ही चाईज, बीजो ल्ागियो नों कोई ।”!
फेर बोलारो बंद । मिट दा एक ओर ठर'रथो मछ टुरग्यो पाछो हो ।
सोपो सागीडो पडप्पो हो | पांव रे मौनख री घेतना धरती पर सूती गगा নম
ही बचीड़ देंवती । भांधा हुयोडा गुत्ता खालो लडता सुणीज हा ।
धींर মামনহ एक भीत सू बूद'र, एक मुत्ती लाई व घात कुतिया
मदा-घ, दो तीन सोाव, फेई घोरवा एरता बा र ए ग्टत मॉक्र एक बाखकछ
में बरपया, लड॒ता सडता तो पाया ही द्वा, प्राय जार भक्त महामारत घड़ों
इर लियो। को एवं न नीच नांसर फ्फेडता लाग्या। घर घणी कोई बोलतों
गुणीरयों ठरोये रोयलू थांद, भ्रघ घडी ही भाँध मत मीचण देया ये, रोच
बस्ते एरर तो छट्ठु री टेबदी दीसे ही, बास रे ऊपर कर बोक हो वा। एक
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