मुख्य मंत्री | Mukhya Mantri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसी विश्राम कक्ष में रात विताते हैं । दपतर के दूसरी धोर मा त्रमण्डल का बैठक घर है। यह कमरा भी बहुत बडा और ढंग से सजाया हुप्ा है। महगती लकडी की वडी सी गोल मेज, जिसके चारो झोर मा त्रयो के लिए मोटे डनतपपिलो से मढी कुर्तिया, मंज के वीचीवीच बडा सा चीनी गूलदान । माली रोज उसमे फूल रख जाता है। हर पुत्रवार को शवसी कमरे मर्मात्रषण्डल दी वैठकं होती है, इसके शलावा कभी कभी जरूरी बैठक' भी बुतायी जाती है । जिस दिन इस कहानी की शुरुप्रात शोर भ्रत है, उस दिन भी धुत्रवार था। दिन के ग्यारह बजे मजिमण्डल की बठक होगी । कर्ण दरपायन भरलस्सुयह्‌ चार वजे विस्तर से उट जाते द । भ्राज भी वैषा ही हुआ है। नॉन पर पूरे धण्टे भर व लम्ब लम्ब इगो से चर्हलकदमी करत रहे, भौर साथ ही साथ राजनीतिक खेल का एक रोजमर्थवाला नवशा मन ही मन तैयार बरते जा रहे ये | ग्राज सबरे टहलते समय माँ मण्डल दी होनेबाली बैठक ही उह्‌ बार बार याद झा रही थी ॥ इस बठक का महत्त्व कितना हो सकता है, इृष्ण द्वपायन को यह श्रच्छी तरह मालूम है। मात्रिमण्डल म तीन बडे गूट हैं उनमे से एक उत्का भ्रपना है। बाकी दो गुटो के एकाएक' उनके विरोध मे मिल जाने से उहं इस्तीफा देने पर मजबूर होना पडा । भ्रभी तक विरोधी गुटो के इस शचानवद मल को वह एकदम तही तोड सके पर हर कोशिश जारी है। केवल इतना ही नही, भातिम निणय के बारे मे वह श्रव भ्राशावादी भी बन गये हैं। मात्रिमण्डल की बैठक में भाज कापी हृद तक यह मालूम हो जायेगा कि उनकी कोशिरा किस हद तक सफ्ल हुई है, भोर प्राग भी सम्भावनाएँ क्तिती हैँ । बैठक से पहले यानी श्राठ बजे स एक वे बाद एक १ई लोग उनसे मेंट करन पायेंगे । वे सबवे-सव राजनीति वे पक्के सिलाडी हैं। बारह व जिनेट मिनिस्टरों मं से बुल सात जनो के साथ शृष्ण द्वपामन पहले से ही बात कर लेंगे । सवेरे घण्टे भर टहलते समय इस होनेवाले सधप के शातरज का নদশা उनके दिमाग में एकदम तेयार हो गया सबरे टहतने के बाद घर लौटकर दृष्ण दपायत एक गिलास सतर का रस लेते हैं। फिर स्नान करने के बाद पूजा के कमरे में ही उह जिनके साथ दिन- भर मे सबसे भ्रधिव समय तक देखा जाता है, वह ईश्वर प्रवश्य नहीं हैं हैं एक बहुत खूबमूरत वृद्धा, जिनके बाल सफेट होकर क्रोव-करीब चेहरे के रग के साथ मिल चुके हैं जिनके जीय शरीर पर तसर वो लाव किनारी की साही होती है। वड़ी-बडो लम्बी झ्ाँखों में उदास, शान्त व्यया भरी रहती है, जो বান कम करती हैं, परतु जिनकी दृष्टि इतनी भ्थपूण होती है कि #प्ण द्वैपायन उपै मुख्यमज्री / १५




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